"ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥"

Monday, April 18, 2011

हनुमान जयंती पर विशेष.....

बजरंगबली कलियुग के एकमात्र ऐसे देवता है जो बस क्षण भर में अपने भक्तों के सारे कष्टों को हर लेते है,बस दिल से एक बार सच्ची आवाज लगाने की आवश्यक्ता है।हनुमत महिमा का गुणगान हमारे सांसारिक और पारलौकिक हर पीड़ा का निदान एक अद्भूत राम बाण सा है।मर्यादा पुरुषोतम श्रीराम के परम प्रिय श्री हनुमान सच में अलौकिक और स्नेह सुधा प्रदान करने वाले है।मेरी अनुभूति है,जब भी मैने अपने जीवन के सर्वाधिक कठिन पलों में बजरंगबली को आवाज लगाया है,वो बस पवनवेग से आये है और सारी मुसीबतों और कष्टों को उड़ाकर मेरी जिंदगी से कही दूर फेंक दिया है।सभी देवी,देवताओं के प्रिय हमारे हनुमान जी बस भावना के भूखे है।वे सभी बौद्धिक कलाओं से युक्त ज्योतिष और संगीत के महाज्ञाता है।इस कलियुग की भीषण त्रासदी में एकमात्र हनुमत मंत्र हर बाधाओं को दूर करने वाला है।सभी कार्यों को सिद्ध कर के हमें जीवन में एक प्रतिष्ठित स्थान दिलाने वाला है।
आज "हनुमान जयंती" के शुभ अवसर पर सर्वप्रथम मै सभी को बहुत सारी बधाईयाँ देना चाहता हूँ,तथा साथ ही आज की जाने वाली पूजा का संक्षिप्त विवरण भी दे रहा हूँ।

आज की पूजाः-
"यदि घर में पूजा स्थान हो,तो हनुमत प्रतिमा के समक्ष या सार्वजनिक मंदिर में जाकर चमेली के तेल का उपयोग कर इक्कीस,एकयावन या एक सौ आठ दीपों की दीपमाला भगवान के समक्ष अर्पण करे।बहुत ही उपयोगी और कारगर पद्धति है,ये मनवांछित फल बिन माँगे ही पा लेंगे..."


अभी कुछ दिनों से मेरे ब्लाग "ॐ शिव माँ" पर लगातार बहुत सी पोस्ट बस हनुमत महिमा और मंत्र प्रयोग पर छपती आयी है,मै उनका लिंक नीचे दे रहा हूँ।आप सब इस ज्ञानमयी आलेखों का श्रवन करे लाभ मिलेगा।

1.)॥ श्री बजरंग बाण ॥


2.)संकटमोचन हनुमानाष्टक


3.)श्री हनुमत महिमा


4.)श्री हनुमत शक्ति मंत्र प्रयोग

"हनुमान जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं"

Tuesday, April 5, 2011

॥ श्री बजरंग बाण ॥

श्री हनुमान जी का बजरंग बाण जो प्रचलित है,उसका प्रभाव तो है ही परन्तु यह बजरंग बाण तांत्रोक्त प्रभाव वाला है।सारे अशुभ ग्रह,शत्रु,अवरोध का शमन बजरंग बाण पाठ से होता है।भूत,पिशाच,तंत्र बाधा,डाईन,मूठ,मारण या आसुरी शक्तियों का कोप इस सारे संकट से हनुमान जी मुक्त करते है।बजरंग बाण का पाठ करते समय अपने दायें हनुमत मूर्ति या चित्र के सामने एक लाल वस्त्र आसन के लिए रख ले   बजरंग बाण के हनुमान जी महामृत्युजय के साथ पंचमुख,सप्तमुख,एकादशमुख रूप धारण करके अकाल मृत्यु से रक्षा तो करते ही है साथ ही यम,काल को दूर भगाकर प्राणों की रक्षा करते है।पाठ से पहले गुरु,गणेश का पूजन कर पाठ करना चाहिए साथ ही तुलसी बाबा के साथ सीताराम जी का ध्यान कर हनुमान जी का निम्न ध्यान कर पाठ करना चाहिए।
                                                       अब श्री बजरंग बाण का पाठ लिख रहा हुँ।कहा जाता है कि जब बजरंग बाण का पाठ किया जाता है,तो हनुमान जी पधार जाते है।आजीवका में बाधा हो, या कोइ भी संकट ,तंत्र,मंत्र,मूठ,या ग्रह दोष से,या भूत पिशाच,का प्रकोप इस सभी बाधा से हनुमान जी रक्षा करये है।आपको कोई रास्ता नहीं मिल रहा हो,तो एक दीपक जला कर  किशमिश,गुड़ का भोग लगाकर प्रथम गुरुदेव,तब श्री गणेश,कुलदेवता का पुजन कर,राम परिवार सहित तुलसीबाबा को प्रणाम कर श्री बजरंग बाण का एक या इच्छा अनुसार विषम संख्या में पाठ करे तो हनुमान जी सारे संकट दूर कर देंगे।गूगूल का आहुती देकर पाठ करे तो विशेष लाभ होगा।
           ध्यान -अतुलित बल धामं,हेमशैलाभ देहं,दनुज वन कृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
             सकल गुणनिधानं वानराणामधीशं,रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
                                          
श्री बजरंग बाण
  ॥दोहा॥ 
निश्चय प्रेम प्रतिति ते,विनय करे सह मान,।तेहि के कारज सकल शुभ,सिद्ध करैं हनुमान॥
॥चौपाई॥
जय हनुमन्त!सन्त हितकारी।सुन लीजे प्रभु!विनय हमारी॥
जन के काज विलम्ब कीजै।आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
                                                       जैसे कूदि सिन्धु के पारा।सुरसा वदन पैठि विस्तारा॥
                                                       आगे जाय लंकिनी रोका।मारेहु लात गई सुर लोका॥
जाय विभीषण को सुख दीन्हा।सीता निरखि परम पद लीन्हा॥
बाग उजारि सिन्धु मँह बोरा।अति आतुर यम कातर तोरा॥
                            अक्षय कुमार मारि संहारा।लूम लपेट लंक को जारा॥
                       लाह समान लंक जरि गई।जै जै ध्वनि सुर पुर नभभई॥
अब विलम्ब केहि कारण स्वामी।कृपा करहु प्रभु!अन्तर्यामी॥
जय जय लखन प्राण के दाता।आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥
                  जै गिरधर!जै जै सुख सागर।सुर समूह समरथ भट नागर॥
                  हनु हनु हनु हनुमन्त हठीले।बैरिही मारु व्रज सम मिले॥
गदा बज्र लै बैरिहि मारौ।महा राज!निज दास उबारौ।
सुनि हँकार हुंकार दै धावौ।ब्रज गदा हनु! बिलम्ब लावौ।
                  ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमन्त कपीसा।ॐ हुं हुं हुं हनु!अरि उर सीसा।
                       सत्य होहु हरि सपथ पाय कै।रामदूत!धरू मारू धाय कै।
 जय जय जय हनुमन्त अगाधा।दुख पावत जन केहि अपराधा।
 पूजा जप तप नेम अचारा।नहिं जानत कछु दास तुम्हारा।
                 वन उपवन जल थल गृह माहीं।तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।
                      पाँव परौं कर जोरि मनावौं।अपने काज लागि गुण गावौं।
जै अंजनी कुमार!बलवन्ता।शंकर सुवन वीर हनुमन्ता।
वदन कराल!काल कुल घातक।राम सहाय!सदा प्रति पालक।
                      भूत प्रेत पिशाच निसाचर।अगिन बेताल काल मारी मर।
                     इन्हें मारु,तोहिं सपथ राम की।राखु नाथ मर्याद नाम की।
जनक सुता हरि दास कहावौ।ताकी सपथ विलम्ब लावौ।
जय जय जय ध्वनि होत अकासा।सुमिरत होत दुसह दुख नासा।
चरन पकरि कर  जोरि मनावौं।एहि अवसर अब केहि गोहरावौं।
                      उठु उठु चलु तोहिं राम दोहाई।पाँय परौं कर जोरि मनाई।
चं चं चं चं चपल चलन्ता।ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता।
हं हं हाँक देत कपि चंचल।ॐ सं सं सहमि पराने खल दल।
                      अपने जन को तुरत उबारो।सुमिरत होत आंनद हमारो।
                      ताते बिनती करौं पुकारी।हरहु सकल दुख विपती हमारी।
परम प्रबल प्रभाव प्रभु तोरा।कस हरहु अब संकट मोरा।
हे बजरंग!बाण सम धावौं।मेटि सकल दुख दरस दिखावौं।
                      हे कपि राज काज कब ऐहौ।अवसर चूकि अन्त पछतैहौ।
                     जन की लाज जात एहि बारा।धावहु हे कपि पवन कुमारा।
जयति जयति जय जय हनुमाना।जयति जयति गुन ज्ञान निधाना।
जयति जयति जय जय कपि राई।जयति जयति जय जय सुख दाई।
          जयति जयति जय राम पियारे।जयति जयति जय,सिया दुलारे।
      जयति जयति मुद मंगल दाता।जयति जयति त्रिभुवन विख्याता।
एहि प्रकार गावत गुण शेषा।पावत पार नहीं लव लेसा।
राम रूप सर्वत्र समाना।देखत रहत सदा हर्षाना।
               विधि सारदा सहित दिन राती।गावत कपि के गुन बहु भाँती।
               तुम सम नहीं जगत बलवाना।करि विचार देखउँ विधि नाना।
यह जिय जानि सरन हम आये।ताते विनय करौं मन लाये।
सुनि कपि आरत बचन हमारे।हरहु सकल दुख सोच हमारे।
                   एहि प्रकार विनती कपि केरी।जो जन करै,लहै सुख ढेरी।
                            याके पढ़त बीर हनुमाना।धावत बान तुल्य बलवाना।
मेटत आय दुख छिन माहीं।दै दर्शन रघुपति ढिंग जाहीं।
पाठ  करे बजरंग बाण की।हनुमत रक्षा करैं प्राण की।
                    डीठ मूठ टोनादिक नासैं।पर कृत यन्त्र मन्त्र नहिं त्रासै।
                             भैरवादि सुर करैं मिताई।आयसु मानि करैं सेवकाई।
प्रण करि पाठ करै मन लाई।अल्प मृत्यु ग्रह दोष नसाई।
आवृत ग्यारह प्रति दिन जापै।ताकी छाँह काल नहिं व्यापै।
                   दै गूगुल की धूप हमेशा।करै पाठ तन मिटै कलेशा।
                        यह बजरंग बाण जेहि मारै।ताहि कहौ,फिर कौन उबारै।
शत्रु समूह मिटै सब आपै।देखत ताहि सुरासुर काँपै।
तेज प्रताप बुद्धि अधिकाई।रहै सदा कपि राज सहाई।

॥दोहा॥
उर प्रतीति दृढ सरन हवै,पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर करै,सब काज सफल हनुमान।
प्रेम प्रतीतिहि कपि भजे,सदा धरै उर ध्यान।
तेहि के कारज सकल सुभ,सिद्ध करैं हनुमान॥
…………….॥समाप्त॥……………..

Friday, April 1, 2011

संकटमोचन हनुमानाष्टक

बाल समय रबि भक्षि लियो तब,तीनहुँ लोक भयो अँधियारो।
ताहि सो त्रास भयो जग को,यह संकट काहुँ सो जात टारो।
देवन आनि करी बिनती तब,छाँड़ि दियो रवि कष्ट निवारो।
को नहिं जानत है जग मे कपि,संकट मोचन नाम तिहारो॥१॥
                                        
अर्थ- हे हनुमान जी! आप बालक थे तब आपने सूर्य को अपने मूख मे रख लिया जिससे तीनो लोकों मे अँधेरा हो गया। इससे संसार भर मे विपति छा गई,‌और उस संकत को कोई भी दूर नही कर सका।देवताओं ने आकर आपकी विनती की और आपने सूर्य को मुक्त कर दिया।इस प्रकार संकट दूर हुआ।हे हनुमान जी,संसार में ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नहीं जानता।

बालि की त्रास कपीस बसै गिरि,जात महा प्रभु पंथ निहारो।
चौंकि महामुनि साप दियो तब,चाहिए कौन बिचार बिचारो।
कै द्विज रुप लिवाय महाप्रभु सो तुम दास के सोक निवारो।
को नहिं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो॥२॥

अर्थ- बालि के डर से सुग्रीव पर्वत पर रहते थे।उन्होनें श्री रामचन्द्र को आते देखा,उन्होनें आपको पता लगा के लिए भेजा।आपने अपना ब्राह्मण का रुप धर कर के श्री रामचन्द्र जी से भेंट की और उनको अपने साथ लिवा लाये,जिससे आपने सुग्रीव के शोक का निवारण किया।हे हनुमान जी,संसार मे ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नहीं जानता।

अंगद के संग लेन गए सिय,खोज कपीस यह बैन उचारो।
जीवत बचिहौ हम सों जु,बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो।
हेरि थके तट सिंधु सबै तब,लाए सिया सुधि प्रान उबारो।
को नही जानत है,जग मे कपि संकट मोचन नाम तिहारो॥३॥

अर्थ- सुग्रीव ने अंगद के साथ सीता जी की खोज के लिए अपनी सेना को भेजते समय कह दिया था कि यदि सीता जी का पता लगाकर नही लाए तो हम तुम सब को मार डालेंगे।सब ढ़ूँढ़ ढ़ूँढ़कर हार गये।तब आप समुद्र के तट से कूद कर सीता जी का पता लगाकर लाये,जिससे सबके प्राण बचे।हे हनुमान जी!संसार मे ऐेसा कौन है,जो आपका संकट मोचन नाम नही जानता।

रावण त्रास दई सिय को सब,राक्षसि सो कहि सोक निवारो।
ताहि समय हनुमान महाप्रभु ,जाय महा रजनीचर मारो।
चाहत सिय अशोक सों आगि सु,दै प्रभु मुद्रिका शोक निवारो।
को नहीं जानत हैं,जग मे कपि संकट मोचन नाम तिहारो॥४॥
अर्थ- जब रावण ने श्री सीता जी को भय दिखाया और कष्ट दिया और सब राक्षसियों से कहा कि सीता जी को मनावें,हे महावीर हनुमान जी,उस समय आपने पहुँच कर महान राक्षसों को मारा।सीता जी ने अशोक वृक्ष से अग्नि माँगी परन्तु आपने उसी वृक्ष पर से श्री रामचन्द्र जी कि अँगूठी डाल दी जिससे सीता जी कि चिन्ता दूर हुई।हे हनुमान जी,संसार मे
ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नही जानता।
बान ल्गयो उर लक्षिमण के तब,प्राण तजे सुत रावन मारो।
लै गृह वैद्य सुषेन समेत,तबै गृह द्रोन सु बीर उपारो।
आनि सजीवन हाथ दई तब,लछिमन के तुम प्रान उबारो।
को नहिं जानत हैं जग मे कपि संकट मोचन नाम तिहारो॥५॥

अर्थ- रावन के पुत्र मेघनाद ने बान मारा जो लक्ष्मण जी की छाती पर लगा और उससे उनके प्राण संकट मे पड़ गए।तब आपही सुषेन वैद्य को घर सहित उठा लाए और द्रोणाचल पर्वत सहित संजीवनी बूटी ले आये जिससे लक्ष्मण जी के प्राण बच गये।हे हनुमान जी,संसार मे ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नही जानता।

रावन जुद्ध अजान कियो तब,नाग की फाँस सबै सिर डारो।
श्री रघुनाथ समेत सबै दल,मोह भयो यह संकट भारो।
आनि खगेस तबै हनुमान जु,बन्धन काटि सुत्रास निवारो।
को नहि जानत है जग मे कपि,संकट मोचन नाम तिहारो॥६॥

अर्थ- रावण ने घोर युद्ध करते हुए सबको नागपाश मे बाँध लिया तब श्री रघुनाथ सहित सारे दल मे यह मोह छा गया की यह तो बहुत भारी संकट है।उस समय,हे हनुमान जी आपने गरुड़ जी को लाकर बँधन को कटवा दिया जिससे संकट दूर हुआ।हे हनुमान जी,संसार मे ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नही जानता।

बधु समेत जबै अहिरावण,लै रघुनाथ पाताल सिधारो।
देविहिं पूजि भली विधि सों बलि,देउ सबै मिलि मंत्र बिचारो।
जाय सहाय भयो तब ही,अहिरावन सैन्य समेत संहारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,संकट मोचन नाम तिहारो॥७॥
अर्थ- अब अहिरावन श्री रघुनाथ जी को लक्षमण सहित पाताल को ले गया,और भलिभांति देवि जी की पूजा करके सबके परामर्श से यह निशचय किया कि इन दोनों भाइयों की बलि दूंगा,उसी समय आपने वहाँ पहुंच कर अहिरावन को उसकी सेना समेत मार डाला। हे हनुमान जी,संसार मे ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नहीं जानता॥

काज किए बड़ देवन के तुम,बीर महाप्रभु बेखि बिचारो।
कौन सो संकट मोर गरीब को,जो तुमसो नहिं जात है टारो।
बेगि हरौ हनुमान महाप्रभु,जो कछु संकट होय हमारो।
को नहिं जानत है जग में कपि,संकटमोचन नाम तिहारो॥८॥
अर्थ- हे महाबीर! आपने बड़े बड़े देवों के कार्य संवारे है।अब आप देखिये और सोचीए कि मुझ दीन हीन का ऐसा कौन सा संकट है जिसको आप दुर नहीं कर सकते। हे महाबीर हनुमान जी,हमारा जो कुछ भी संकट हो आप उसे शीघ्र ही दूर कर दीजीए।हे हनुमान जी,संसार में ऐसा कौन है जो आपका संकट मोचन नाम नहीं जानता।
॥दोहा॥
लाल देह लाली लसे,अरु धरि लाल लंगूर।
बज्र देह दानव दलन,जय,जय जय कपि सूर॥
अर्थ- आपका शरीर लाल है,आपकी पूँछ लाल है और आपने लाल सिंदूर धारण कर रखा है,आपके वस्त्र भी लाल है।आपका शरीर बज्र है,और आप दुष्टों का नाश कर देते है।हे हनुमान जी!आपकी जय हो,जय हो,जय हो॥