"ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥"

Saturday, January 22, 2011

धर्म कि अनिवार्यता:- “सत्य या असत्य”


सत्य क्या है,असत्य क्या है,यह तो शास्त्र,संत,गुरु मुख वाणी है,जिसमे देव वाणी,शक्ति संवाद,ॠषि मुनि संवाद का विशाल संकलन है।मंत्र,पूजा,अनुष्ठान,तंत्र क्रियाएँ सब धोखा मात्र है।ज्योतिष,हस्तरेखा,रत्न कोरी कल्पना मात्र है।ये साधु,प्रवचनकर्ता,संस्थाने सब अधिक प्रचार प्रसार कर सीधे साधे लोगो को धोखा देना है।तभी तो सामान्य जीवन जीने वाले साधारण लोग अनेक समस्या से ग्रसित भले हो,परन्तु ये उपर्युक्त सभी क्षेत्र वाले मालामाल है।जो जितना योग्य है,वक्ता है,विशेष प्रतिष्ठा अर्जित कर रहे है।जितनी भीड़ आयेगी वह उतने सफल होंगे।क्या ये सत्य के राह पर चलना हुआ या असत्य के राह पर?ये आप हम सभी को अपनी अन्तरआत्मा से पूछना पड़ेगा,समझना पड़ेगा।आज कल इतना धोखा,इतना प्रपंच कितना सस्ता है ये धर्म का दुकान।यहा भगवान,मंत्र,यंत्र को बेचा जाता है।प्रचार आता है,कि श्रीयंत्र,या अमूक यंत्र पूर्ण विधान से प्रतिष्ठा करा कर भेजा जा रहा है शीघ्र आर्डर करे।वाह भाई वाह खूब रही लक्ष्मी यंत्र को बेच बेच कर करोड़ों रुपया कमा कर आप सही में लक्ष्मीवान बन गये।धन्य है लक्ष्मी उपासक आप पर माँ लक्ष्मी की भी दया,करुणा से आपको देख रही है।मेरा भक्त,मेरा व्यापार कर के लक्ष्मीवान बन गया,खुश रहो भक्त।मोक्ष क्या जाने,ज्ञान क्या जानूँ,सिर्फ रुपया इसे क्या जन कल्याण में लगाओगे या अपना भोग का साधन बनाओगे।
 व्यक्ति की अंतरआत्मा सुप्त हो गयी है,इसे पढ़ कर वे लोग खुश होंगे जो मेरी बात को सही मानते है,परंतु उपरोक्त मेरे विचार में ये पूर्ण सत्य नहीं है।ऐसे गलत करने वाले लाखों है।मंत्र,तंत्र,धर्म संस्था,ज्योतिष,योग,ध्यान,अनुष्ठान बिल्कुल सत्य और कल्याणकारी है।साधु संत,साधक.भक्त नहीं रहे तो ये सृष्टि समाप्त हो जायेगी।मंत्र शक्ति से क्या नहीं हो सकता है,परंतु ये योग्य गुरु या मार्गदर्शक बता सकता है।ज्योतिष अवस्य हमारा मार्गदर्शन करता है और कष्ट निवारण का रास्ता भी बताता है।ये तो इस विद्या को जानने वाले सत्य राही है या असत्य जिसके कारण पाखंड फैला हुआ है।दोनों प्रकार के लोग बैठे है सत्य पर चलने वाले और असत्य पर चलने वाले।जहा कोई निश्चित सत्यवादी है तो कोई पूरे असत्यवादी है ,वही कोई कोई थोड़ा सत्य थोड़ा असत्य दोनों राहों पर है।परंतु लोग भी द्वंद में रहते है किसी पर पूर्ण भरोसा नहीं।कोई यंत्र मँगा लेंगे,कोई मंत्र सुनकर.पढ़कर जाप करेंगे।हम धर्म के क्षेत्र में है तो हमारा बड़ा कर्तव्य बनता है,कि लोगों के अंतर कि विकार,शंका दोष दूर किया जाये तथा पीड़ीत को जैसे भी हो मदद का राह बताया जाये भले हमे उसका श्रेय मिले या ना मिले।समाज विकार ग्रस्त होता जा रहा है,लोग अपने दुख से दुखी नही है जितने दुसरे के सुख से दुखी है।व्रत,उपवास कर के भी लोग आत्ममंथन नहीं करते।सही लोग,सही व्यक्ति के पास पहुँच ही जाते है,या घबड़ाते है कारण उन्हे सत्य बड़ा कटु विष सा लगता है।सुबह से रात तक दूसरे की चुँगली करते है,परंतु खुब धार्मिक बन ये सभी अपना अमूल्य क्षण खो रहे।जो जैसा होता है वैसा उसका मित्र समाज बन जाता है।सज्जन तो सज्जन के साथ सुख मानेंगे,परंतु दुर्जन निम्न कोटि को ही शुभचिंतक ही मानेंगे।
इसलिए कोई धर्म के मार्ग में धोखा,पाखंड कर रहे या भला कार्य ये तो उस व्यक्ति के संस्कार पर निर्भर है।अगर विरोध करना है तो उस क्षेत्र में जा कर अवलोकन करे तभी सत्य,असत्य का भेद पता चलेगा।श्रीकृष्ण ब्रह्म है परंतु दुर्योधन उन्हे मायावी समझता था ।ये तो कृष्ण की उस दिव्य लीला को समझ नहीं पाया और महाभारत जैसे विध्वंसकारी महायुद्ध का कारण बना।ऐसे लोगों से सृष्टि और प्रकृति का कोप आम जनमानस को सहना पडंता है।अपनी सुधार समाज का सुधार है।किसी में दोष ना देख कर प्रत्येक रात्रि विचार करे कि दिन भर हम कोई गलत कार्य तो नहीं कर दिये।

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