पहले गण आते है,भक्त आते है,पुत्र आते है तभी जाकर सनातन माता पिता का दर्शन होता है।भैरव प्रसन्न होगे तभी
काली या शक्ति का दर्शन होगा।पुष्पदंत शिव गण ही था जो श्राप के कारण मनुष्य योनि मे आया था,उसने अदभूत शिव भक्ति की परन्तु शिव दर्शन नही हो रहा था,तब गणेश स्तोत्र की रचना की और श्री गणेश दर्शन दिये उसके बाद ही शिव प्रसन्न हुए तभी दर्शन हो पाया।ये ही होता है,पहले हनुमान जी आते है बाद मे सीताराम जी आते है।
श्री राम सीता वियोग मे भटक रहे थे की हनुमान आ गये,भरत वियोग मे तड़प रहे थे की हनुमान जी आ गये।माँ सीता करुण विलाप कर रही थी की हनुमान जी आ गये।विभीषण व्याकुल थे की हनुमान जी आ गये।सुग्रीव बाली के भय से त्राही त्राही कर रहे थे की हनुमान जी आ गये और इस युग मे तुलसी बाबा तड़प रहे थे की हनुमान जी आ गये,मै स्वयं अंतिम जीवन को समाप्त करने जा रहा था की हनुमान जी आ गये।आज करोड़ो भक्त रोते है तो पहले हनुमान या कोई पुत्र भक्त संत आ ही जाते है।पहले हनुमान,गणेश,भैरव,योगनी,मातृका,गण आते है उपासक को देखते है,जाँचते है,परखते है तभी शिव या जगदम्बा या श्री विष्णु का दर्शन होता है,कृपा होता है।सीताराम इस ब्रह्माण्ड के परम तत्व है।वही शिवशक्ति सनातन माता पिता परम ब्रह्म है,सभी एक ही है यही तो परम सत्य है।श्री राम के पीछे सीता खड़ी है और आगे आगे हनुमान जी चलते है।शिव के पीछे माता बग्ला चलती है वही आगे आगे काली चलती है।हनुमान अवतरण सनातन धर्म की रक्षा,भक्तो की रक्षा और राम कथा के लिए ही हुआ है।राम के लिए ये कुछ भी कर सकते है।जब सहस्त्र रावण से युद्ध हो रहा था तो सारी सेना को एक ही बाण मे अपने अपने देश,घर पहुँचा देने वाला सहस्त्र रावण जानता था की शिव अंशात्मक हनुमान भी यहा है,तो मै राम को कैसे परास्त करुँगा।हनुमान जी राम की लीला समझ रहे थे,की यहाँ सीता लीला होने जा रही थी,अब मुझे राम के आगे से हटना पड़ेगा,अब परम शक्ति सीता राम के आगे कालीका रुप धारण करेगी। यह गोपनीय रहस्य है,जो मैंने लिख दिया ,शिवशक्ति लीला में शिव के आगे काली का महा तांडव होगा।सहस्त्र रावण ने बाण मारा राम मुर्छित हो गये ,यह देख सीता रथ से कुद कर काली रुप धारण कर क्षण मात्र में ही सहस्त्र रावण का बध कर दी।सहस्त्र रावण लंका के रावण से हजारों गुणा अधिक बलशाली था। सीता ने काली रुप धारण किया ,क्यों,कारण जब परम ब्रह्म क्रिया रहित होकर तटस्थ हो जाता है तो शक्ति ही सभी क्रिया करती है,यँहा राम को परास्त ,निस्तेज देख काली उग्र होकर विनाश करने लगी तो उनके उग्रता को रोकने के लिए ,शिव को ,उनके रास्ते में निस्तेज ,तटस्थ लेट जाना पड़ा,तभी काली की दृष्टि अपने प्रियतम शिव पर गई और काली का क्रोध जाता रहा,यही तो लीला है,काली ही जगत की मूल शक्ति है। सभी कहीं न कही झुकते है किसी न किसी का ध्यान करते है,परन्तु काली स्वतंत्र महाशक्ति है ये शिव की प्रियतमा है।जब पार्वती से विवाह हुआ,शिव जी,पार्वती को प्रसन्न करने का कई प्रयास करते है,वही पार्वती कितने उग्र तप से शिव को मोह रही है वही काली नृत्य करती है शिव को रिझाने के लिए,कौन है यह काली,जो सीता से काली बन गई।वही काली कभी कृष्ण बन गये।वाह!क्या लीला है।जब सती ने शिव को रोकने के लिए जब दश रुप धारण किया तो प्रथम रुप काली का ही था।सती ने आत्म दाह करने से पूर्व दश रुप प्रकट कर दश महाविद्या कहलायी,जिसमे प्रथम १.काली २.तारा ३.श्री महात्रिपुर सुन्दरी ४.भुवनेश्वरी ५.छिन्नमस्तिका ६.भैरवी ७.धूमावती ८.बगलामुखी ९.मातंगी १०.श्री कमला के नाम से विख्यात हुई,यही जब हिमालय पुत्री पार्वती बन शिव बल्लभा बनी तो ये ही नव दुर्गा रुप धारण करके जगत मे विख्यात हुई।यह ही महाविद्या तत्व है।एक पर शून्य दश निराकार,निर्गूण सभी एक ही है।एक जोड़ नौ यानि दश हो जाता है,यह ही पूर्ण रहस्य है,इसपर कभी लिखूँगा।बिना शक्ति कृपा संसार मे कुछ नही हो सकता,शक्ति के भय से इस ब्रह्माण्ड मे सभी आसुरी प्रवृति वाले थर थर काँपते है,शक्ति का इशारा है,घोषणा है कि शिव की तरफ,राम की तरफ,कृष्ण की ओर भक्त, सज्जन,संतो की ओर टेढ़ी नजर से भी देखोगे तो सिर मुण्डन कर दूँगी,इस जगत मे रहना है तो अपने कर्मो को सही मार्ग पर ले जा,शिव,राम,हरि,सता समझ ये सभी एक ही है।विष्णु मोहिनी रुप बना कर भागते तो शिव सुध बुध खोकर अपनी प्रेममयी लीला का विस्तार किये तो ही हनुमान जी हमारे बीच आ पाये।विष्णु श्याम वर्ण है,वह नारी रुप धारण किये वही काली विष्णु की योगनिद्रा है।कृष्ण के रास मंडल मे शिव भी नारी रुप धारण करते है वही सीता काली रुप धारण करती है।यह सभी परम कृपालु और इनकी यह गोपनीय रहस्य है।जब हम सत्य पथ पर चलेंगे तो पहले गुरु,गणेश, हनुमान.भैरव पहले इनकी कृपा चाहिए तभी सदगुरु,शिव,जगदम्बा,हरि पूर्ण कृपा करेंगे,तभी हमे मोक्ष,ज्ञान तथा ब्रह्म की प्राप्ती होंगी।हम जैसे भी जी रहे है,कोई बात नही परन्तु हमारी चेतना हमे हमेशा उस दिव्य विचारों से अपने कर्मो को सत्य पथ पर ले जाने हेतु हमे हमेशा पथ प्रदर्शक की तरह प्रयत्नशील रखे ये ही हमारा धर्म होना चाहिए।
काली या शक्ति का दर्शन होगा।पुष्पदंत शिव गण ही था जो श्राप के कारण मनुष्य योनि मे आया था,उसने अदभूत शिव भक्ति की परन्तु शिव दर्शन नही हो रहा था,तब गणेश स्तोत्र की रचना की और श्री गणेश दर्शन दिये उसके बाद ही शिव प्रसन्न हुए तभी दर्शन हो पाया।ये ही होता है,पहले हनुमान जी आते है बाद मे सीताराम जी आते है।
श्री राम सीता वियोग मे भटक रहे थे की हनुमान आ गये,भरत वियोग मे तड़प रहे थे की हनुमान जी आ गये।माँ सीता करुण विलाप कर रही थी की हनुमान जी आ गये।विभीषण व्याकुल थे की हनुमान जी आ गये।सुग्रीव बाली के भय से त्राही त्राही कर रहे थे की हनुमान जी आ गये और इस युग मे तुलसी बाबा तड़प रहे थे की हनुमान जी आ गये,मै स्वयं अंतिम जीवन को समाप्त करने जा रहा था की हनुमान जी आ गये।आज करोड़ो भक्त रोते है तो पहले हनुमान या कोई पुत्र भक्त संत आ ही जाते है।पहले हनुमान,गणेश,भैरव,योगनी,मातृका,गण आते है उपासक को देखते है,जाँचते है,परखते है तभी शिव या जगदम्बा या श्री विष्णु का दर्शन होता है,कृपा होता है।सीताराम इस ब्रह्माण्ड के परम तत्व है।वही शिवशक्ति सनातन माता पिता परम ब्रह्म है,सभी एक ही है यही तो परम सत्य है।श्री राम के पीछे सीता खड़ी है और आगे आगे हनुमान जी चलते है।शिव के पीछे माता बग्ला चलती है वही आगे आगे काली चलती है।हनुमान अवतरण सनातन धर्म की रक्षा,भक्तो की रक्षा और राम कथा के लिए ही हुआ है।राम के लिए ये कुछ भी कर सकते है।जब सहस्त्र रावण से युद्ध हो रहा था तो सारी सेना को एक ही बाण मे अपने अपने देश,घर पहुँचा देने वाला सहस्त्र रावण जानता था की शिव अंशात्मक हनुमान भी यहा है,तो मै राम को कैसे परास्त करुँगा।हनुमान जी राम की लीला समझ रहे थे,की यहाँ सीता लीला होने जा रही थी,अब मुझे राम के आगे से हटना पड़ेगा,अब परम शक्ति सीता राम के आगे कालीका रुप धारण करेगी। यह गोपनीय रहस्य है,जो मैंने लिख दिया ,शिवशक्ति लीला में शिव के आगे काली का महा तांडव होगा।सहस्त्र रावण ने बाण मारा राम मुर्छित हो गये ,यह देख सीता रथ से कुद कर काली रुप धारण कर क्षण मात्र में ही सहस्त्र रावण का बध कर दी।सहस्त्र रावण लंका के रावण से हजारों गुणा अधिक बलशाली था। सीता ने काली रुप धारण किया ,क्यों,कारण जब परम ब्रह्म क्रिया रहित होकर तटस्थ हो जाता है तो शक्ति ही सभी क्रिया करती है,यँहा राम को परास्त ,निस्तेज देख काली उग्र होकर विनाश करने लगी तो उनके उग्रता को रोकने के लिए ,शिव को ,उनके रास्ते में निस्तेज ,तटस्थ लेट जाना पड़ा,तभी काली की दृष्टि अपने प्रियतम शिव पर गई और काली का क्रोध जाता रहा,यही तो लीला है,काली ही जगत की मूल शक्ति है। सभी कहीं न कही झुकते है किसी न किसी का ध्यान करते है,परन्तु काली स्वतंत्र महाशक्ति है ये शिव की प्रियतमा है।जब पार्वती से विवाह हुआ,शिव जी,पार्वती को प्रसन्न करने का कई प्रयास करते है,वही पार्वती कितने उग्र तप से शिव को मोह रही है वही काली नृत्य करती है शिव को रिझाने के लिए,कौन है यह काली,जो सीता से काली बन गई।वही काली कभी कृष्ण बन गये।वाह!क्या लीला है।जब सती ने शिव को रोकने के लिए जब दश रुप धारण किया तो प्रथम रुप काली का ही था।सती ने आत्म दाह करने से पूर्व दश रुप प्रकट कर दश महाविद्या कहलायी,जिसमे प्रथम १.काली २.तारा ३.श्री महात्रिपुर सुन्दरी ४.भुवनेश्वरी ५.छिन्नमस्तिका ६.भैरवी ७.धूमावती ८.बगलामुखी ९.मातंगी १०.श्री कमला के नाम से विख्यात हुई,यही जब हिमालय पुत्री पार्वती बन शिव बल्लभा बनी तो ये ही नव दुर्गा रुप धारण करके जगत मे विख्यात हुई।यह ही महाविद्या तत्व है।एक पर शून्य दश निराकार,निर्गूण सभी एक ही है।एक जोड़ नौ यानि दश हो जाता है,यह ही पूर्ण रहस्य है,इसपर कभी लिखूँगा।बिना शक्ति कृपा संसार मे कुछ नही हो सकता,शक्ति के भय से इस ब्रह्माण्ड मे सभी आसुरी प्रवृति वाले थर थर काँपते है,शक्ति का इशारा है,घोषणा है कि शिव की तरफ,राम की तरफ,कृष्ण की ओर भक्त, सज्जन,संतो की ओर टेढ़ी नजर से भी देखोगे तो सिर मुण्डन कर दूँगी,इस जगत मे रहना है तो अपने कर्मो को सही मार्ग पर ले जा,शिव,राम,हरि,सता समझ ये सभी एक ही है।विष्णु मोहिनी रुप बना कर भागते तो शिव सुध बुध खोकर अपनी प्रेममयी लीला का विस्तार किये तो ही हनुमान जी हमारे बीच आ पाये।विष्णु श्याम वर्ण है,वह नारी रुप धारण किये वही काली विष्णु की योगनिद्रा है।कृष्ण के रास मंडल मे शिव भी नारी रुप धारण करते है वही सीता काली रुप धारण करती है।यह सभी परम कृपालु और इनकी यह गोपनीय रहस्य है।जब हम सत्य पथ पर चलेंगे तो पहले गुरु,गणेश, हनुमान.भैरव पहले इनकी कृपा चाहिए तभी सदगुरु,शिव,जगदम्बा,हरि पूर्ण कृपा करेंगे,तभी हमे मोक्ष,ज्ञान तथा ब्रह्म की प्राप्ती होंगी।हम जैसे भी जी रहे है,कोई बात नही परन्तु हमारी चेतना हमे हमेशा उस दिव्य विचारों से अपने कर्मो को सत्य पथ पर ले जाने हेतु हमे हमेशा पथ प्रदर्शक की तरह प्रयत्नशील रखे ये ही हमारा धर्म होना चाहिए।
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