"ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥"

Saturday, February 26, 2011

धूमावती

मोह का जो नाश करती है वही धूमावती है।विधवा रूप है इनका,ये अपने प्रिय पति शिव को ही निगल गई थी तो शिव धुंआ बन निकल गये तब से इनका यही रूप है और इनका प्रभाव जगत मे आया।शत्रु नाश,देश पर संकट,ॠण,रोग सभी बाधा से मुक्त करती है।विजय प्राप्ति,भयंकर उपद्रव मे इनकी साधना शीघ्र लाभ देती है।इनकी साधना परम गोपनीय है,बिना गुरु मार्ग दर्शन के बिना इनकी साधना भूल कर भी नही करना चाहिए।ये बहुत उग्र भी है वही ये हमेशा दया भी रखती है।ये हमेशा भूखी रहती है परन्तु अपने भक्तों का सदा ध्यान भी रखती है।कोई ऐसा संकट जो दूर नही हो रहा हो सब उपाय करके देख लिया गया हो परन्तु इनकी साधना से यह तत्क्षण सारे संकट दूर कर देती है।
 इन्हे अपने भक्तों का दुख देखा नही जाता कारण किसी न किसी मोह मे हम बँधे है उस मोह से ये छुटकारा दिला देती है।जब मोह समाप्त होता है तो सत्य और वैराग्य का उदय होता है।१९६१-‍‌‌‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍६२ चीन के युद्ध मे जब स्थिति विकट हो गई तो भारत के प्रधानमंत्री श्री नेहरू जी ने परम सिद्ध राष्ट्र गुरु श्री स्वामी जी महाराज दतिया श्री पीताम्बरा पीठ के पास जाकर इस समस्या को रखे की बड़ी मुश्किल के बाद भारत आजाद हुआ था अब क्या होगा।तब श्री स्वामी जी ने दया करके उस राष्ट्र हित के लिए श्री बगलामुखी तथा इन्हीं माता धूमावती का दिव्य अनुष्ठान कराया था और इस अनुष्ठान के अंतिम रात्री साक्षात माता धूमावती ने आश्चर्यजनक रूप से युद्ध बंद करा दिया था,ऐसी इनकी महिमा है।युद्ध के बाद श्री स्वामी ने भक्तो के कल्याण के लिए श्री पीताम्बरा पीठ मे इनकी भी स्थापना करा कर भक्तों के लिए इनका दर्शन सुलभ बना दिया।इस प्रयोग के बाद भारत एक बार फिर इस संकट से बाहर हो गया।ये माता दशमहाविद्या मे परम गोपनीय है।

1 comment:

महेन्‍द्र वर्मा said...

माता धूमावती की कृपा सब पर बनी रहे।
मां के चरणों में नमन।