(अनुभूत लेख )
दश महाविद्या मे प्रथमा शक्ति काली माँ है।काली माँ के कई रूप में जैसे महाकाली,शमसान काली,गुहय काली,भद्र काली,काम काली,दक्षिण काली और भी कितने रूप है।सती ने जब शिव को रोकने हेतु अपने रुप का विस्तार किया उसमे काली प्रथम है इस कारण ये आद्या शक्ति है।शिव के हृदय पर जिनकी स्थापना होती हो वही सृष्टि की परम सता है।यही माँ सर्व पूज्य भी है।वह समय याद है,जब इनकी मूर्ति और आचार देख कर डर लगता था,मै इनकी पूजा नहीं कर सकता,ये क्या देती है,ये तो श्मशान प्रिय,बलि प्रिय,इतनी परम सता नहीं हो सकती,ऐसा ही विचार था मेरा।परंतु जीवन के उस मोड़ पर आ कर खड़ा हो गया,जहाँ सामने काली मूर्ति थी।डरते - डरते मैने चरण स्पर्श किया माँ का,बदन में झुरझुरी आ गयी,इनका ऐसा रुप क्यों है?कितने देवी देवताओं का मंत्र मिला परंतु कोई भी मन को शांति नहीं दिला सका,अंत में गुरुदेव काली मंत्र प्रदान किये।होश खराब हो गया,मुझे काली का पूजन करना होगा।एक तरफ आर्थिक तंगी,दूसरा विशेष संघर्षमय जीवन साधना शुरु किया।विचित्र बात हो गयी।मन को बड़ी राहत मिली।धीरे धीरे काली माँ सौम्य और ममतामय रुप में दिखायी देने लगी।अब उनकी मूर्ति पकड़ रो पड़ता।ऐसा लगाव,ऐसा प्रेम शायद पहली बार महसूस हुआ।माँ ने सब सम्भाल लिया डर,भय तिरोहीत हो गया,परंतु बलि मै देख नहीं पाता और सोचता हे माँ!ये क्या लीला है तेरी।होता होगा ये तुम्हारा पूजन प्रक्रिया लेकिन मै तो स्वयं तुम्हारे सामने बलि रुप में हूँ,क्या कहूँ मै।अबोध बालक की जो स्थिति होनी चाहिए,वही मेरा हो गया।माँ तुमसे बिछड़ने पर मन रो पड़ता क्यों माँ,कौन हो तुम मेरी?कहाँ हो माँ,कोई जवाब नहीं मिलता।वर्षों बाद लगा बेकार है ये पूजन,काली होगी साधकों की माँ वे साधक पुण्यात्मा होंगे,जो उनकी साधना करते है,मै तो पापी निच हूँ,मुझपर इनकी कृपा नहीं हो पायेगी।यह सोचकर दिल बैठा जा रहा है,कि मै काली माँ के बारे में क्या क्या गलत सोचता रहता हूँ।वह काली रात प्रथम पहर तक मैने नदी किनारे श्मशान पर गुजारा।अब काली के कुण्डल से दिव्य सौम्य प्रकाश जैसा पूर्ण चंद्र का आगमन मन को मोह रहा था।ये काली तुम कहाँ हो?सिर्फ साधकों, तंत्रज्ञों को दर्शन देती हो, मै तो खाली हूँ,आ ना माँ।तभी अति सौम्य सुंदर मुख श्याम वर्ण,लम्बी शरीर,दिव्य आभा प्रकट हो रही थी।मंद मुस्कान,काली माँ दिखायी दी।वो माँ,तुम जैसे होश,चेतना सारे लुप्त हो गये,रह गया माँ का पवित्र चरण,मै उसे पकड़ करुण विलाप किया जा रहा हूँ।हे माँ!मुझे कुछ नहीं चाहिये,सिर्फ तेरा साथ,तेरी भक्ति,तेरे चरण,वह भी परम सत्य भाव से,पवित्र भाव से,तेरी लीला,मेरे जीवन में आने का क्या प्रयोजन बता माँ तु।तुने मुझे अपने से दूर क्यों किया?माँ की हँसी और कुछ गोपणीय रहस्य,माँ का कुछ दिव्य वचन,आज्ञा प्राप्त हुआ।तेरी मूर्ति इतनी विकराल,सच में तु इतनी सौम्य,वो भी करुण दृष्टि से भक्त को देखने वाली,क्या रहस्य है माँ बोलो ना।दृश्य लोप हो गया,माँ ओझल हो गयी,परंतु वो दिव्य क्षण मेरे दिल में समा गयी।याद आया एक बार किसी दुष्ट तांत्रिक ने मेरे उपर तंत्र का प्रयोग करा दिया था,तभी मेरे पिताजी के द्वारा एक साधक ने मुझे रात्रि में दक्षिणमुखी बैठ कर जग्नमंगल कवच का पाठ करने का आदेश दिया था,ये काली कवच ही है और मै इसी पाठ से ठीक हो पाया था।चार वर्ष के साधना काल में कालिका मंत्र का इतना ज्यादा जप कर लिया,कि शरीर में व्याधि ने जकड़ लिया।दवा,डाक्टर सब हार गये,क्या करुँ मेरे जान पर बन आयी,आक्रोश हुआ।हे माँ ! क्या करती हो,कहाँ जाऊँ,तभी वटुक भैरव का दर्शन हुआ।वटुक भैरव के आज्ञा से उनकी साधना के साथ महामृत्युन्जय शिव की साधना कर उस रोग से मुक्त हो सका।प्रथम काली प्रशन्न होगी,तभी नवमहाविद्या की साधना फलप्रद होगी मार्ग चाहे दक्षिण हो या वाम मातृ सता की साधना मन का विसर्जन ही तो है,जिस आचार से जिससे साद्य हो वो वैसा ही करे।काली भाव प्रधान है,ये काल से रक्षा तो करती ही है,जीव को उस लायक बना देती है,कि वो शुद्ध होकर आगे का मार्ग तय करे।काली सबसे आगे है,बाकी रुप पीछे पीछे शिव सब के साथ खड़े है।ये गुरु मार्ग की साधना है,हमें क्या चाहिये,कैसी साधना,कौन कौन रुप ये सब शिव और काली तय करते है।ये भोला शिव की भोली शिवा है।ये भक्त की जितनी भी निम्न दुर्गुण,विचार,संस्कार को देखकर भी अपनी दया बनाये रखती है।इनके भक्त को ह्रदय से जुड़ना चाहिये,ऐसा कोई भी काम ना करे जो माँ को अच्छा ना लगे।वह चैत नवरात्र दशमहाविद्या की साधना चल रही थी,जिस दिन छिन्नमस्ता की साधना थी,उस रात एक दिव्य रोशनी प्रकट हो गयी।मंदिर के बायें ऐसा दिव्य प्रकाश मैने देखा ना था।हम पाँच व्यक्ति रात्रि साधना काली प्रतिमा के समक्ष करते थे।धूमावती साधना की रात्रि तो जोर से आवाज आयी,और मंदिर के बाहर किसी के गरजने की आवाज के साथ अस्त्र -शस्त्र की टकराहट,दिव्य अस्त्रों की खनखनाहट।हम सभी भय से जप कर रहे थे,तभी एक दिव्य प्रकाश के साथ सबकुछ शांत हो गया।साधना में बहुत अनुभूति होती है,और उसी अनुभूति के सहारे साधक आगे बढ़ पाता है।जितने शाक्त सिद्ध हुये,वे सभी प्रथम काली अराधना किये है,हमे भी माँ की कृपा मिली,तभी तो काली कुल से उठकर श्री कुल की पीताम्बरा बगलामुखी की साधना कर पाया।प्रथम गुरु काली साधक औघड़ सीताराम जी तो अंतिम गुरु स्वयं शिव अवतार श्री स्वामी जी महाराज का सहारा मिला।यह लेख उन साधकों के लिये है,जो भ्रम में रहते है,उन्हें प्रथम काली साधना कर के माता की कृपा प्राप्त करनी चाहिये।वह रात्रि वेला, आँसू बह रहे थे और माता की याद सता रही थी, क्या करुँ मंत्र जप तो होता रहा है,तभी ध्यान में श्यामा गले में गुलाब की माला,दिव्य खुले केश,हल्की मुस्कान,तभी माँ का स्वरुप बदल गया।पीत वस्त्र धारणी माँ बुला रही है,मै खो गया और कुछ भी याद नहीं रहा।ये काली ही परम दयामयी बगला के रुप में खड़ी है।
6 comments:
अति सुन्दर जानकारी | अवलोकन कर धन्य हुआ |
muje ye puri kahani kafi romanchak lagi, agar ye sachi ghatna to sach me us insan se mahan koi nahi jinko mata kali ke darshan hue. or meri astha isme or bhi dhard ho gai.
अति सुन्दर
Jai ma kali ma teri
sda hi jai jai kar ho
Jai ma kali ma teri
sda hi jai jai kar ho
Aapse vinti he Ki mujhe Devi ke Rup ki anusar mujhe Meri maaka name batane Krupa kare....
Char bhuaja he...
Dayi taraf hath me khadad sir upper ke pas it haha huaa, dusre hath me trshul jo bhaise ke upper var kiyya huaa,
Bayi taraf upper ke hath me dhal he aur dusre hath me bhaise ke Kati garden se nikla as ur ka sar pakda huaa he
Aur Sher Ki savari he
Regds
Laxman Udesh
Cont. 9619452424
laxmanjpurohit1973@gmail.com
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