श्री हनुमान जी का बजरंग बाण जो प्रचलित है,उसका प्रभाव तो है ही परन्तु यह बजरंग बाण तांत्रोक्त प्रभाव वाला है।सारे अशुभ ग्रह,शत्रु,अवरोध का शमन बजरंग बाण पाठ से होता है।भूत,पिशाच,तंत्र बाधा,डाईन,मूठ,मारण या आसुरी शक्तियों का कोप इस सारे संकट से हनुमान जी मुक्त करते है।बजरंग बाण का पाठ करते समय अपने दायें हनुमत मूर्ति या चित्र के सामने एक लाल वस्त्र आसन के लिए रख ले । बजरंग बाण के हनुमान जी महामृत्युजय के साथ पंचमुख,सप्तमुख,एकादशमुख रूप धारण करके अकाल मृत्यु से रक्षा तो करते ही है साथ ही यम,काल को दूर भगाकर प्राणों की रक्षा करते है।पाठ से पहले गुरु,गणेश का पूजन कर पाठ करना चाहिए साथ ही तुलसी बाबा के साथ सीताराम जी का ध्यान कर हनुमान जी का निम्न ध्यान कर पाठ करना चाहिए।
अब श्री बजरंग बाण का पाठ लिख रहा हुँ।कहा जाता है कि जब बजरंग बाण का पाठ किया जाता है,तो हनुमान जी पधार जाते है।आजीवका में बाधा हो, या कोइ भी संकट ,तंत्र,मंत्र,मूठ,या ग्रह दोष से,या भूत पिशाच,का प्रकोप इस सभी बाधा से हनुमान जी रक्षा करये है।आपको कोई रास्ता नहीं मिल रहा हो,तो एक दीपक जला कर किशमिश,गुड़ का भोग लगाकर प्रथम गुरुदेव,तब श्री गणेश,कुलदेवता का पुजन कर,राम परिवार सहित तुलसीबाबा को प्रणाम कर श्री बजरंग बाण का एक या इच्छा अनुसार विषम संख्या में पाठ करे तो हनुमान जी सारे संकट दूर कर देंगे।गूगूल का आहुती देकर पाठ करे तो विशेष लाभ होगा।
ध्यान -अतुलित बल धामं,हेमशैलाभ देहं,दनुज वन कृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्।
सकल गुणनिधानं वानराणामधीशं,रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
॥ श्री बजरंग बाण ॥
॥दोहा॥
निश्चय प्रेम प्रतिति ते,विनय करे सह मान,।तेहि के कारज सकल शुभ,सिद्ध करैं हनुमान॥
॥चौपाई॥
जय हनुमन्त!सन्त हितकारी।सुन लीजे प्रभु!विनय हमारी॥
जन के काज विलम्ब न कीजै।आतुर दौरि महा सुख दीजै॥
जैसे कूदि सिन्धु के पारा।सुरसा वदन पैठि विस्तारा॥
आगे जाय लंकिनी रोका।मारेहु लात गई सुर लोका॥
जाय विभीषण को सुख दीन्हा।सीता निरखि परम पद लीन्हा॥
बाग उजारि सिन्धु मँह बोरा।अति आतुर यम कातर तोरा॥
अक्षय कुमार मारि संहारा।लूम लपेट लंक को जारा॥
लाह समान लंक जरि गई।जै जै ध्वनि सुर पुर नभभई॥
अब विलम्ब केहि कारण स्वामी।कृपा करहु प्रभु!अन्तर्यामी॥
जय जय लखन प्राण के दाता।आतुर ह्वै दुख करहु निपाता॥
जै गिरधर!जै जै सुख सागर।सुर समूह समरथ भट नागर॥
ॐ हनु हनु हनु हनुमन्त हठीले।बैरिही मारु व्रज सम मिले॥
गदा बज्र लै बैरिहि मारौ।महा राज!निज दास उबारौ।
सुनि हँकार हुंकार दै धावौ।ब्रज गदा हनु! बिलम्ब न लावौ।
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमन्त कपीसा।ॐ हुं हुं हुं हनु!अरि उर सीसा।
सत्य होहु हरि सपथ पाय कै।रामदूत!धरू मारू धाय कै।
जय जय जय हनुमन्त अगाधा।दुख पावत जन केहि अपराधा।
पूजा जप तप नेम अचारा।नहिं जानत कछु दास तुम्हारा।
वन उपवन जल थल गृह माहीं।तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं।
पाँव परौं कर जोरि मनावौं।अपने काज लागि गुण गावौं।
जै अंजनी कुमार!बलवन्ता।शंकर सुवन वीर हनुमन्ता।
वदन कराल!काल कुल घातक।राम सहाय!सदा प्रति पालक।
भूत प्रेत पिशाच निसाचर।अगिन बेताल काल मारी मर।
इन्हें मारु,तोहिं सपथ राम की।राखु नाथ मर्याद नाम की।
जनक सुता हरि दास कहावौ।ताकी सपथ विलम्ब न लावौ।
जय जय जय ध्वनि होत अकासा।सुमिरत होत दुसह दुख नासा।
चरन पकरि कर जोरि मनावौं।एहि अवसर अब केहि गोहरावौं।
उठु उठु चलु तोहिं राम दोहाई।पाँय परौं कर जोरि मनाई।
ॐ चं चं चं चं चपल चलन्ता।ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्ता।
ॐ हं हं हाँक देत कपि चंचल।ॐ सं सं सहमि पराने खल दल।
अपने जन को तुरत उबारो।सुमिरत होत आंनद हमारो।
ताते बिनती करौं पुकारी।हरहु सकल दुख विपती हमारी।
परम प्रबल प्रभाव प्रभु तोरा।कस न हरहु अब संकट मोरा।
हे बजरंग!बाण सम धावौं।मेटि सकल दुख दरस दिखावौं।
हे कपि राज काज कब ऐहौ।अवसर चूकि अन्त पछतैहौ।
जन की लाज जात एहि बारा।धावहु हे कपि पवन कुमारा।
जयति जयति जय जय हनुमाना।जयति जयति गुन ज्ञान निधाना।
जयति जयति जय जय कपि राई।जयति जयति जय जय सुख दाई।
जयति जयति जय राम पियारे।जयति जयति जय,सिया दुलारे।
जयति जयति मुद मंगल दाता।जयति जयति त्रिभुवन विख्याता।
एहि प्रकार गावत गुण शेषा।पावत पार नहीं लव लेसा।
राम रूप सर्वत्र समाना।देखत रहत सदा हर्षाना।
विधि सारदा सहित दिन राती।गावत कपि के गुन बहु भाँती।
तुम सम नहीं जगत बलवाना।करि विचार देखउँ विधि नाना।
यह जिय जानि सरन हम आये।ताते विनय करौं मन लाये।
सुनि कपि आरत बचन हमारे।हरहु सकल दुख सोच हमारे।
एहि प्रकार विनती कपि केरी।जो जन करै,लहै सुख ढेरी।
याके पढ़त बीर हनुमाना।धावत बान तुल्य बलवाना।
मेटत आय दुख छिन माहीं।दै दर्शन रघुपति ढिंग जाहीं।
पाठ करे बजरंग बाण की।हनुमत रक्षा करैं प्राण की।
डीठ मूठ टोनादिक नासैं।पर कृत यन्त्र मन्त्र नहिं त्रासै।
भैरवादि सुर करैं मिताई।आयसु मानि करैं सेवकाई।
प्रण करि पाठ करै मन लाई।अल्प मृत्यु ग्रह दोष नसाई।
आवृत ग्यारह प्रति दिन जापै।ताकी छाँह काल नहिं व्यापै।
दै गूगुल की धूप हमेशा।करै पाठ तन मिटै कलेशा।
यह बजरंग बाण जेहि मारै।ताहि कहौ,फिर कौन उबारै।
शत्रु समूह मिटै सब आपै।देखत ताहि सुरासुर काँपै।
तेज प्रताप बुद्धि अधिकाई।रहै सदा कपि राज सहाई।
॥दोहा॥
उर प्रतीति दृढ सरन हवै,पाठ करै धरि ध्यान।
बाधा सब हर करै,सब काज सफल हनुमान।
प्रेम प्रतीतिहि कपि भजे,सदा धरै उर ध्यान।
तेहि के कारज सकल सुभ,सिद्ध करैं हनुमान॥
…………….॥समाप्त॥……………..
7 comments:
आभार...... बजरंग बली की यह स्तुति साझा करने के लिए....
आपको नवसंवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें....
आदर्णीय राज शिवमजी,
आपका ब्लांंग पष्ट पढकर बेहद खुशी मिली ।
आप जोभी कररहे है वो मानवजातिको सिधी
राह दिखाई देता है ।आपका प्रयास सराहनिय
है । ईसी तरहा भविष्यमे भी ईसी तरहा जानकारी
मिलती रहेगी यही एक आस ।
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आपका ब्लांंग पष्ट पढकर बेहद खुशी मिली ।
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है । ईसी तरहा भविष्यमे भी ईसी तरहा जानकारी
मिलती रहेगी यही एक आस ।
आदरणीय महाराज बजरंग बाण मे बैरहि मारु व्रज सम मिले या बैरहि मारु वज्र के कीले कृपया मार्गदर्शन करे. कुछ गलती हो तो क्षमा करे प्रणाम.
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