"ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥"

Thursday, September 8, 2011

"भय का निवारण करते है".....(भैरव)

अनुभूतियाँ
बटुक भैरव शिवांश है तथा शाक्त उपासना में इनके बिना आगे बढना संभव ही नहीं है।शक्ति के किसी भी रूप की उपासना हो भैरव पूजन कर उनकी आज्ञा लेकर ही माता की उपासना होती है।भैरव रक्षक है साधक के जीवन में बाधाओं को दूर कर साधना मार्ग सरल सुलभ बनाते है।वह समय याद है जब बिना भैरव साधना किये ही कई मंत्रों पुश्चरण कर लिया था तभी एक रात एकांत माता मंदिर से दूर हटकर आम वृक्ष के नीचे आसन लगाये बैठा था तभी गर्जना के साथ जोर से एक चीखने की आवाज सुनाई पड़ी,नजर घुमाकर देखा तो एक सुन्दर दिव्य बालक हाथ में सोटा लिए खड़ा था और उसके आसपास फैले हल्के प्रकाश में वह बड़ा ही सुन्दर लगा।मैं आवाक हो गया और सोचने लगा ये कौन है तभी वो बोले कि "राज मुझे नहीं पहचाने इतने दिनो से मैं तुम्हारी सहायता कर रहा हूँ और तुमने कभी सोचा मेरे बारे में परन्तु तुम नित्य मेरा स्मरण,नमस्कार करते हो जाओ काशी शिव जी का दर्शन कर आओ।" 
मैंने प्रणाम किया और कहा हे बटुक भैरव आपको बार बार नमस्कार है,आप दयालु है,कृपालु है मैं सदा से आपका भक्त हूँ,मेरे भूल के लिए आप मुझे क्षमा करे।मेरे ऐसा कहने से वे प्रसन्न मुद्रा में अपना दिव्य रूप दिखाकर वहाँ से अदृश्य हो गये।मुझे याद आया कि कठिन साधनाओं के समय भैरव,हनुमान,गणेश इन तीनों ने मेरा बहुत मार्गदर्शन किया था,तथा आज भी करते है।जीवन में कहीं भी भटकाव हो या कठिनाई भैरव बताते है कि आगे क्या करना चाहिए,तभी जाकर सत्य का राह समझ में आता है।

भैरव कृपा
भैरव भक्त वत्सल है शीघ्र ही सहायता करते है,भरण,पोषण के साथ रक्षा भी करते है।ये शिव के अतिप्रिय तथा माता के लाडले है,इनके आज्ञा के बिना कोई शक्ति उपासना करता है तो उसके पुण्य का हरण कर लेते है कारण दिव्य साधना का अपना एक नियम है जो गुरू परम्परा से आगे बढता है।अगर कोई उदण्डता करे तो वो कृपा प्राप्त नहीं कर पाता है।
भैरव सिर्फ शिव माँ के आज्ञा पर चलते है वे शोधन,निवारण,रक्षण कर भक्त को लाकर भगवती के सन्मुख खड़ा कर देते है।इस जगत में शिव ने जितनी लीलाएं की है उस लीला के ही एक रूप है भैरव।भैरव या किसी भी शक्ति के तीन आचार जरूर होते है,जैसा भक्त वैसा ही आचार का पालन करना पड़ता है।ये भी अगर गुरू परम्परा से मिले वही करना चाहिए।आचार में सात्वीक ध्यान पूजन,राजसिक ध्यान पूजन,तथा तामसिक ध्यान पूजन करना चाहिए।भय का निवारण करते है भैरव।
प्रसंग
एक बार एक दुष्ट साधक ने मेरे एक साधक मित्र पर एक भीषण प्रयोग करा दिया जिसके कारण वे थोड़ा मानसिक विकार से ग्रसित हो गये परन्तु वे भैरव के उपासक थे,तभी भैरव जी ने स्वप्न में उन्हें बताया कि अमुक मंत्र का जप करो साथ ही प्रयोग विधि बताया ,साधक मित्र नें जप शुरू किया और तीन दिन में ही स्वस्थ हो गये,और उधर वह दुष्ट साधक को अतिसार हो गया ,वह प्रभाव समझ गया था,वह फोन कर रोने लगा कि माफ कर दिजिए नहीं तो मर जाउँगा,तब मेरे मित्र ने मुझसे पूछा क्या करूँ,तो मैंने कहा कि शीघ्र माफ कर दिजिए तथा भैरव जी से कहिए कि माफ कर दें,हमलोगों को गुरू परम्परा में क्षमा,दया,करूणा का भाव विशेष रुप से रखना पड़ता है।
भैरव स्वरुप
इस जगत में सबसे ज्यादा जीव पर करूणा शिव करते है और शक्ति तो सनातनी माँ है इन दोनो में भेद नहीं है कारण दोनों माता पिता है,इस लिए करूणा,दया जो इनका स्वभाव है वह भैरव जी में विद्यमान है।सृष्टि में आसुरी शक्तियां बहुत उपद्रव करती है,उसमें भी अगर कोई विशेष साधना और भक्ति मार्ग पर चलता हो तो ये कई एक साथ साधक को कष्ट पहुँचाते है,इसलिए अगर भैरव कृपा हो जाए तो सभी आसुरी शक्ति को भैरव बाबा मार भगाते है,इसलिये ये साक्षात रक्षक है।
काल भैरव....(वाराणसी)
भूत बाधा हो या ग्रह बाधा,शत्रु भय हो रोग बाधा सभी को दूर कर भैरव कृपा प्रदान करते है।अष्ट भैरव प्रसिद्ध है परन्तु भैरव के कई अनेको रूप है सभी का महत्व है परन्तु बटुक सबसे प्यारे है।नित्य इनका ध्यान पूजन किया जाय तो सभी काम बन जाते है,जरूरत है हमें पूर्ण श्रद्धा से उन्हें पुकारने की,वे छोटे भोले शिव है ,दौड़ पड़ते है भक्त के रक्षा और कल्याण के लिए।

6 comments:

Dr Varsha Singh said...

जरूरत है हमें पूर्ण श्रद्धा से उन्हें पुकारने की,वे छोटे भोले शिव है ,दौड़ पड़ते है भक्त के रक्षा और कल्याण के लिए।

आप की बातों से सहमत हूँ। यह आलेख बहुत महत्वपूर्ण है....इस महत्वपूर्ण प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई।

vikashbadli said...

जय बाबा भैरव

Unknown said...

बटुक भेरब की जय

Unknown said...

JAI JAI SHREE BATUK BHAIRAVNATH

Unknown said...

JAI JAI SHREE BATUK BHAIRAVNATH

Unknown said...

जय भैरों बाबा की। हे बटुक भैरव सबका कल्याण करें। मेरा जीवन आपको समर्पित है और मैं मृत्यु के बाद आपमें ही विलीन होना चाहता हूं। आप अपने सभी भक्तों को इसी तरह संभालते रहिए और इस जिंदगी के लिए आपका शुक्रिया।