"ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥"

Friday, December 31, 2010

ज्योतिष विद्या और मै

ज्योतिष शास्त्र एक ऐसी विद्या है जो पूर्णरुपेन भगवत अराधना और दया से ही प्राप्त हो सकती है।
मैने अपने जीवन की आधी सदी बस ये जानने में बिता दिया कि ज्योतिष शास्त्र आखिर है क्या?
ये बहुत ही गुढ़ विद्या है, जो हर असम्भव को सम्भव कर सकता है।
भूत,वर्तमान और भविष्य त्रिकालों का जानकार ही एक सच्चा ज्योतिष होता है।वो महाकाल त्रिकालदर्शी शिव सा तेज वाला कालपुरुष होता है।आज कल के निम्नस्तरीय वातावरण में ज्यों ही हमारे कानों में ज्योतिष शब्द आता है, हम सोच लेते है एक चंदन धारी, धोती पहने एक बुजुर्ग की छवि।पर ज्योतिष का जानकार इन्ही रुपों का संवाहक हो ऐसा जरुरी नहीं। आजकल युवाओं का रुझान इस विद्या की ओर देखने को मिला है ,जो ये साबित करता है कि अब भी हमारा देश विवेकानंद के सपनों को साकार करने में जागरुक है।मै स्वयं एक युवा ज्योतिष हूँ, मैने मात्र २० साल की उम्र से ही इस विद्या का प्रहरी हूँ।रात दिन सुबह शाम एक करके आज २० सालों बाद भी ऐसा लगता है कि मैने कुछ नहीं सीखा, मै कुछ नहीं जानता।ज्योतिष शास्त्र अनंत है।धन्य है हमसब जो ऐसी विद्या के सागर के दो बूँद से जनकल्याण हेतु दो बूँद उपयोग में लाते है।


ज्योतिष शास्त्र एक दैविक विद्या है और साथ में एक ऐसा मार्गदर्शक कि जन्मपत्री का सही गणित करके भविष्य वाचन किया जाये तो आगे का मार्ग शुभ, अशुभ का पता चल जाता है। ज्योतिष एक महान विद्या है, वही उसका दुरुपयोग भी बहुत हो रहा है।एक दो छोटी मोटी पुस्तकों को पढ़ ज्योतिष बनना कठिन है।किसी इष्ट की सहायता से ही एक सार्थक फलित वाचक ज्योतिष बना जा सकता है।

भगवत दया से निरंतर मै अपने विचारों से आपसबको को रुबरु कराऊँगा,यूँही मेरा साथ दे...
धन्यवाद।