"ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥"

Saturday, August 13, 2011

"श्री राम".....(जगत के पालनहार)

श्री रामचरित मानस का पाठ सभी कामनाओं की पूर्ति के साथ ही संकट एवं रोग निवारण और आयुवर्धक भी हैं।कम पढ़ा लिखा व्यक्ति भी इसका लाभ ले सके इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास जी का अवतरण हुआ था।वैसे तो मानस का प्रत्येक मंत्र फलदायी है,परन्तु कुछ अनुभूत प्रयोग दे रहा हूँ।
-:मेरे अनुभव:-
कुछ वर्ष पहले की बात है मेरे रिश्तेदारी की एक स्त्री को पैर के असाध्य रोग ने अपाहिज सा बना दिया।कईयों वैद्य,डाक्टर से उपचार कराने के बाद भी कोई लाभ नहीं मिला उल्टा रोग बढता गया।रोगी स्त्री का दर्द ऐसा था कि वह बार बार अपने पति से कहती थी कि मुझे जहर दे दिजिए कारण दर्द असहनीय था।पुरा परिवार शोक मे था कारण जाँच में डाक्टर के कुछ आता ही नहीं था।मेरे पास यह सूचना दी गई तब उसी रात रोगी स्त्री ने स्वप्न में श्री सिताराम जी का दर्शन किया मैं समझ गया और मैंने श्रीरामचरित मानस का सम्पुट नवाहन परायण का पाठ करवाने का सलाह दिया।
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गुरू,गणेश पूजन कर तुलसी बाबा सहित हनुमान जी का पूजन कर श्री सीताराम जी सपरिवार सहित पंचोपचार पूजन कर विशेष मंत्र से संपुट कर श्रीरामचरित मानस शुरू किया गया।रोगी को मूल मंत्र बताया गया तथा रोगी स्त्री को एक आसन पर बैठा दिया गया।पाठ शुरू हुआ तथा पाठ के समाप्ति पर आरती कर प्रसाद का फल,चरणामृत,तुलसीदल रोगी स्त्री को दिया गया और अंत में संपुट मंत्र से मार्जन किया गया।प्रथम दिन से ही थोड़ा दर्द कम होने लगा परन्तु नौंवे दिन तक दर्द यथावत बना रहा।नौवे दिन पाठ समाप्ति पर प्रत्येक काण्ड के प्रथम,अंतिम दोहा,चौपाई से हवन हुआ।मूल मंत्र से तीन माला हवन कराया गया जो रोगी स्त्री के हाथ से हुआ।हवन समाप्ति पर जैसे अद्भुत चमत्कार सा हो गया।रोगी स्त्री स्वयं उठकर चलने लगी,खुशी का ठिकाना नहीं,दौड़ती,रोती,खुशी के मारे भाव विभोर हो गई।रोग का नामोनिशान नहीं।इस घटना को आज दस वर्ष हो गएँ वह स्त्री आज तक स्वस्थ हैं।दुसरी घटना यह है कि जब मेरी माँ के बारे में डाक्टर ने कह दिया कि अब ये तीन चार दिन से ज्यादा नहीं रह सकती।माँ की इच्छा थी,कि मेरी बहन जो बहुत दूर थी उन्हें आने का टिकट नहीं मिलने के कारण विलम्ब हो गया मैंने मंत्र का जप करवाया जिसका प्रभाव हुआ कि जब बहन आ गई माँ ने देख लिया तब जाकर उनकी मृत्यु हुई।तीसरा अनुभव उस वक्त का है जब मेरी माँ की मृत्यु के बाद बारिश छुटने का नाम नहीं ले रहा था खैर उसी बारिश में हमलोग सारी व्यस्था किये और जब नदी किनारे शमसान भूमी पर पहूँचे वहाँ चिता सजाया गया लेकिन बारिश रूकने का नाम नहीं ले रहा था,अब क्या किया जाय घण्टों हो गये,सारे लोग भिगने के डर से गाड़ी मे बैठे थे तब जाकर मैंने मानसिक रुप से श्रीराम जी का स्मरण कर कहा "हे करूणानिधान राम लोग कहते  एक मंत्र का जप शुरू किया,मुश्किल से पाँच मीनट ही हुआ होगा कि आकाश में तीन बार भंयकर गर्जना हुई और बारिश बन्द हो गयी लेकिन एक आश्चर्य ये था कि बस उस क्षेत्र में वहाँ बारिश रूक गया था लेकिन २०० मीटर की दूरी पर बारिश होता रहा खैर हमलोग अग्नि संस्कार कर वापस आए तब तक वहाँ एक बूंद बारिश नहीं हुई।ऐसी ही बहुत सी राम कृपा की मनोहारी अनुभव है एक बार मुझसे ईष्या वश एक दुष्ट तांत्रिक ने मुझपर भीषण प्रयोग कर दिया,यह बात आज से २२,२३ वर्ष पहले की हैं,उस समय मेरा साधना का समय था तभी हनुमान जी ने आगाह किया,कुछ व्यस्था हो तब तक मुझपर प्रयोग आ गया लेकिन उसको हनुमान जी रोके रहे मैं थोड़ा अर्धविक्षिप्त सा हो गया था कि एक रात परम संत श्री देवराहा बाबा ने प्रकट होकर मुझे सूक्ष्म शरीर के द्वारा उस तांत्रिक के पास ले जाकर उसे दिखाया,मुझे तो विश्वास नहीं हुआ कारण वो मेरे बहुत शुभचिन्तक व्यक्ति थे,उस घटना के बाद मैंने श्री राम मंत्र के साथ हनुमान जी का तांत्रोक विशेष अनुष्ठान किया तब जाकर उस प्रयोग से मुक्त हो पाया था।मैं शूरू से शाक्त रहा हूँ परन्तु माता के सान्निध्य में जितने अनुभव हुये है उससे जीवन में बहुत कुछ समझने का चिंतन हुआ।सभी का महत्व है कभी कभी कोई साधक अपने ईष्ट के अलावा बाकी देवी,देवता को कुछ नहीं समझता जिस कारण उन्हें विशेष लाभ नहीं मिल पाता।हिन्दू के सनातन धर्म में पंचदेवता का बड़ा महत्व है,इनमें शिव,शैव धर्म,शक्ति,शाक्त धर्म,विष्णु,वैष्णव धर्म,गणेश,गाणपत्य धर्म,सूर्य,सौर धर्म इन पांचो का बड़ा महत्व रहा है,जो इष्ट होते है वह प्रधान तथा बाकी साथ पूज्यनीय हैं।
-:श्री रामचरित मानस का महत्व और मंत्र प्रयोग:-
श्रीराम तथा रामचरित मानस में क्या नहीं हैं कोई श्रद्धा से करे तो सब कुछ प्राप्त होता हैं।राम बिना सब कुछ सुना सुना भक्त किसी का हो जीवन में राम को आना पड़ता है,कारण हमारे अंदर आसुरी शक्ती भी प्रबल है उस पर विजय वास्ते तथा बाहर जगत में भीषण संकट,अवरोध है इस लिये श्रीराम को पुकारना पड़ता है और भक्त के एक बार पुकारने पर राम कृपालु होकर सहायता करते हैं।जो जगत में रम रहा है वही राम नाना रूप धारण कर हमारा कल्याण करते है।सीताराम में तारा है,वही शिव में विष्णु बसे है, दुर्गा में राम हैं घट घट में राम ही राम वही हनुमान जी के ह्रद्वय में सीताराम विराज रहे हैं।राम का चरित्र जीवन को सुन्दर बनाने में सहायक है,वही इसे आम आदमी के लिए लाभप्रद बनाने के लिए ही तुलसी बाबा को आना पड़ा,।राम मर्यादा पुरषोत्तम है वही कृष्ण प्रेम पुरषोत्तम है राम रक्षक है,दाता है,वही कृष्ण मित्र है,प्रेममय है परन्तु दोनों एक ही है।जब भी मैंने श्रीराम को पुकारा वो आए और मुझे संकट से उबारा,ऐसा मैंने अनुभव किया है।सीता उनकी शक्ती है यही मूल प्रकृति जगदम्बा हैं।शिव को भी हनुमान के रूप में जाना पड़ा इसलिए प्रथम राम कथा शिव के द्वारा जग में आया है।रावण के युद्ध के बाद श्रीराम को सहस्त्र रावण से युद्ध में जाना पड़ा वहाँ सहस्त्र रावण के बाण से राम मुर्छित हो गये तब माँ सीता को काली रूप धारण कर सहस्त्र रावण को समाप्त करना पड़ा।दुर्गा सप्तशती के प्रथम अध्याय के रात्री सूक्त में विष्णु के कान के मैल से उत्पन्न मधु,कैटभ के प्रकट होने के समय बह्मा जी के द्वारा भगवान विष्णु की योग निद्रा महाकाली की स्तुति करने पर ही काली के आशिर्वाद ही विष्णु जाग युद्ध किये,यही श्री राम है।राम परम करूणामय है तभी तो कोई जाये उनके पास परन्तु कपट को त्याग कर भक्ति भाव से उसको वे गले लगा लेते है।श्रीराम ऐसे भक्त वत्सल है प्रभु।सुन्दर काण्ड में आया है "मोहि कपट छल छिद्र न भावा" इस लिए श्रीराम राजा है,वीर है,सब को बांटते है।माँ जगदम्बा थी,हनुमान थे,शिव जी थे लेकिन राम के बिना चैन नहीं,शाति नहीं तभी श्री राम पधार गये शिव,माँ मेरी ओर देख मुस्कुरा दिए और हनुमान जी मुझे साथ ले झुमने लगे।हे राम क्या तु मेरी श्यामा माँ हो या शिव हो,तुझे देख कर ही गहन शांति व्याप्त हो रही है।उपरोक्त घटनाओं में जो मंत्र प्रयोग हुआ वह दे रहा हूँ।
१.मंत्रः- "त्रिविध दोष दुःख दारिद दावन।कलि कुचालि कलि कलुष नसावन॥"
२.मंत्रः- "दैहिक दैविक भौतिक तापा।राम राज नहिं काहुहिं व्यापा॥"
३.मंत्रः- "आपदाम पहर्तारं दातारं सर्व सम्पदाम्।लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो भूयो नमाम्यहम्॥"