"ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारूकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥"

Sunday, March 6, 2011

श्री रामकृष्ण परमहंस जयंती पर विशेष.....(एक ज्ञानवर्धक प्रसंग)

श्री रामकृष्ण परमहंस से मिलने नित्य बहुत सारे लोग आते थे,वे उनसे तरह तरह के तर्क करते रहते थे,रामकृष्ण सभी के तर्को का जवाब खुशी खुशी देते थे।एकबार केशवचन्द्र नामक बहुत बड़े विद्वान तार्किक उनके पास तर्क करने पहुँचे,केशवचन्द्र रामकृष्ण को अपने तर्को से हराना चाहते थे।रामकृष्ण तो पढ़े लिखे नहीं थे,परन्तु वे सिद्ध पुरुष थे,परन्तु केशवचन्द्र के नजर में वे गंवार थे।उस दिन काफी चर्चा से बहुत भीड़ जुट गई,सबलोग सोच रहे थे कि रामकृष्ण अवश्य हार जायेंगे कारण उस सदी के सबसे बड़े विद्वान,तार्किक जो पधारे थे।केशवचन्द्र ईश्वर के खिलाफ तर्क देने लगे,रामकृष्ण विरोध नहीं करके उनकी प्रशंसा करने लगे,क्या दलील दी आपने।केशवचन्द्र सोच रहा था कि रामकृष्ण मेरे तर्को को गलत कहेगा तभी तो तर्क विवाद बढ़ेगा,परन्तु रामकृष्ण तो सारे तर्को को गुणगान किया।
जब रामकृष्ण ने किसी भी तर्क को गलत नहीं कहा तो केशवचन्द्र को अन्दर से बेचैनी होने लगी।रामकृष्ण,केशवचन्द्र की हर बात पर उन्हें जोश दिलाते और कहते,आपकी हर बात बहुत जँचती है,आखिर में जब सारे तर्क चूक गये तो केशवचन्द्र ने रामकृष्ण से कहा कि,तुम मेरे बात मानते हो कि ईश्वर नहीं है,रामकृष्ण ने कहा "तुम्हें न देखा होता तो मै यह बात मान लेता पर तुम्हारे जैसी प्रतिभा पैदा होती है तो यह बिना ईश्वर के हो ही नहीं सकती।तुम्हें देखकर यह प्रमाण मिल गया कि ईश्वर है",सत्य अपने आप में सबसे बड़ा प्रमाण है,केशवचन्द्र उस दिन वहाँ से चले गये,रात्रि में रामकृष्ण के पास पुनः आए और उनसे बोले,जिस भाँति तुम हो गये हो,मेरे लिए ऐसा होने का कोई उपाय है।रामकृष्ण ने अगर विवाद किया होता तो केशवचन्द्र लौटकर नहीं आते।इसलिए तर्क से धर्म प्राप्त नहीं हो सकता।