राष्ट्र गुरु "श्री स्वामी जी" गुरुदेव .....
साधक सीताराम जी
साधक श्री विष्णुकान्त मुरिया जी
बहुत सारा वह यादे अभी भी भावविभोर कर देता हैं।उस समय स्वप्न मे श्री स्वामी दिखाई देते थे,परन्तु मैं नही जान पाता कि ये कौन है,लेकिन कभी कभी लगता था कि ये शिव है।काली की साधना और दिव्य दर्शन के बाद यह पता चला कि काली परम दयालु,करूणामयी है,तथा वे भक्त के भाव देखती है,वे परम प्रेममयी है।औघड़ गुरूजी के समाधि एक वर्ष पूर्व मुझे माँ ने वह रहस्य दिखा दिया।उसी समय श्री स्वामी ने दर्शन दिया और कुछ गोपनीय रहस्य से परिचित कराया।मुझे पता चला कि गुरू जी समाधि लेंगे और मुझे अब शिव श्री स्वामी के पास जाना है,उस समय मुझे पता चल गया था,कि जिन्हे मैं स्वप्न मे देखता रहा हूँ वो श्रीस्वामी श्री पिताम्बरा पीठ,दतिया के राष्टगुरू जो काशी विश्वनाथ जी के अवतार लेकर दतिया में बैठे है।जीवन में इतना रहस्य देखा हूँ कि अगर लिखूँ तो एक ग्रंथ बन जायेगा।शिव से शूरू करके साधना करते हुए अंत में स्वामी के चरणों मे अंतिम विश्राम तथा पुर्ण समर्पण अब स्वामी है,जैसा करे,अब वही शिव है वही माँ पीताम्बरा।काली माता ने श्री चरणों मै ला दिया।अब दतिया हमेशा आता रहा परन्तु अज्ञानता वश मेरी दीक्षा नही हो पा रही थी।श्री स्वामी अमृतेश्वर शिव के रूप मे विराजे है।श्री स्वामी ने कई बार मुझे कुछ रहस्य से परिचित कराया तथा कुछ ऐसा लीला रचे कि शारदीय नवरात्र में जाना पड़ा।वहाँ जाने पर पता चला कि कई साधक कई वर्षो से दीक्षा के लिए आए है,परन्तु दीक्षा नही मिलेगा ,कारण दीक्षा मे समय लगेगा,हो सकता है एकाध वर्ष,मैं तो घबड़ा गया और श्री स्वामी के अमृतेश्वर लिंग के पास जाकर कहा कि हे गुरूदेव आपने ही बुला लिया तो ये कैसी लीला है आपका तभी एक आदमी पिछे की ओर से कुछ बोला।मैं पिछे देखा कोई साधक थे ,बोले क्या कोई दिक्कत है मैंने कहा दीक्षा लेना था,उसपर वे बोले कि आप श्री विष्णुकान्त मुरिया जी से मिलिए,वही उपदेशक है,श्रीगुरू जी के प्रिय शिष्य तथा बहुत बड़े साधक के साथ दयालु है,और गुरू चरण पादुका के समक्ष गुरूकृपा से यही दीक्षा देते है।यहाँ जो होता है श्री स्वामी की इच्छा से होता है,और गुरूदेव ने बुलाया है तो दीक्षा अवश्य मिलेगा ऐसा मेरा विश्वास था।मै प्रथम बार श्री मुरिया जी के पास गया,एक दिव्य व्यक्तित्व रक्त परिधान मे एक गौरवर्ण को देख मैने कहा कि मुझे दीक्षा चाहिए तो मेरा नाम पूछा,और गम्भीर मुद्रा मे कहा मिल जायेगा आज ही,स्वयं उन्होने सारी प्रक्रिया पूर्ण करवा कर बोले कि तीन बजे दीक्षा के लिए आ जाए।मैं समय के पूर्व ही पधार गया ,नियत समय पर दीक्षा हुआ,वह क्षण लगा जैसे स्वामी चरण पादुका पर विराजमान मंद मंद मुस्कुरा रहे है,मै थोड़े पल के लिए चेतना शून्य हो गया।जप शूरू करने से पुरे नवरात्र कितने दिव्य अनुभव हुए जैसे जन्म जन्म की मुराद पूरी हुई हो।श्री विष्णुकान्त मुरिया जी परम साधक के साथ एक विशिष्ट ज्योतिष भी है,तथा इतने दयालु है की आज भी उनके मार्गदर्शन से आगे बढ रहा हूँ।हमेशा इन्होने मुझपर अपनी दया दृष्टि रख साधना के गोपनीय मर्म समझा कर मुझे आगे बढाते रहे है।मेरे इस लेख को पढने वाले को मै जरूर कहूँगा कि एक बार श्री पीताम्बरा पीठ जाकर श्री पीताम्बरा माई के साथ श्री स्वामी का दर्शन करे,तथा वहाँ श्री धूमावती माई,महाकाल भौरव,श्री बटुक भौरव,श्री गणेश जी,श्री हनुमान जी,हरिद्रा सरोवर के साथ श्री स्वामी मंदिरम् का दर्शन करे,वही अमृतेश्वर महादेव मे साक्षात श्री स्वामी जी महराज विराज रहे है।यहाँ पर प्राचीन वण्खण्डेश्वर शिव मंदिर भी साक्षात जाग्रत शिव है जो भीम के द्वारा प्रतीष्ठित है,यह अश्वथामा की साधना स्थली रही है साथ मे श्री परशुराम जी का दर्शन भी करे।श्री माँ त्रिपुर सुन्दरी का मंदिर भी है परन्तु वहाँ दर्शन करना संभव नही है।भारत का ऐसा दिव्य शक्ति पीठ जो आज कही ऐसा दिखाई नही देता,जाए तो श्री विष्णुकान्त मुरिया जी जैसे अलौकिक,साधक से मिल आपको आत्मिक शांति मिलेगा।मैने इनका विशाल हृद्वय देखा है,तथा ये कितने विलक्षण पूरूष है शायद मै समझ नही पाता हूँ,कोइ भी समस्या हो शीघ्र समाधान बता देते है।जब गुरू कृपा होती है,तो जीवन के परम सत्य दिखाई देने लगता है।यह गुरू कृपा ही है कि मै स्वामी चरण रज की धूली लगा पाया।नाना पंथ जगत के निज निज गुण गावै।सबका सार बता कर गुरू मारग लावै।मन ही बंधन है,आत्मा की बात करने से कुछ नही होगा,गुरू ही सब कर्ता है,जो जैसा पात्र होगा उस समय गुरू की कृपा मिल ही जाती है।यह स्थान झाँसी के पास है।जीवन मे जब कोई निशचल मन से साधना पर चल पड़े तो स्वामी कृपा करते ही है।
साधक श्री विष्णुकान्त मुरिया जी
बहुत सारा वह यादे अभी भी भावविभोर कर देता हैं।उस समय स्वप्न मे श्री स्वामी दिखाई देते थे,परन्तु मैं नही जान पाता कि ये कौन है,लेकिन कभी कभी लगता था कि ये शिव है।काली की साधना और दिव्य दर्शन के बाद यह पता चला कि काली परम दयालु,करूणामयी है,तथा वे भक्त के भाव देखती है,वे परम प्रेममयी है।औघड़ गुरूजी के समाधि एक वर्ष पूर्व मुझे माँ ने वह रहस्य दिखा दिया।उसी समय श्री स्वामी ने दर्शन दिया और कुछ गोपनीय रहस्य से परिचित कराया।मुझे पता चला कि गुरू जी समाधि लेंगे और मुझे अब शिव श्री स्वामी के पास जाना है,उस समय मुझे पता चल गया था,कि जिन्हे मैं स्वप्न मे देखता रहा हूँ वो श्रीस्वामी श्री पिताम्बरा पीठ,दतिया के राष्टगुरू जो काशी विश्वनाथ जी के अवतार लेकर दतिया में बैठे है।जीवन में इतना रहस्य देखा हूँ कि अगर लिखूँ तो एक ग्रंथ बन जायेगा।शिव से शूरू करके साधना करते हुए अंत में स्वामी के चरणों मे अंतिम विश्राम तथा पुर्ण समर्पण अब स्वामी है,जैसा करे,अब वही शिव है वही माँ पीताम्बरा।काली माता ने श्री चरणों मै ला दिया।अब दतिया हमेशा आता रहा परन्तु अज्ञानता वश मेरी दीक्षा नही हो पा रही थी।श्री स्वामी अमृतेश्वर शिव के रूप मे विराजे है।श्री स्वामी ने कई बार मुझे कुछ रहस्य से परिचित कराया तथा कुछ ऐसा लीला रचे कि शारदीय नवरात्र में जाना पड़ा।वहाँ जाने पर पता चला कि कई साधक कई वर्षो से दीक्षा के लिए आए है,परन्तु दीक्षा नही मिलेगा ,कारण दीक्षा मे समय लगेगा,हो सकता है एकाध वर्ष,मैं तो घबड़ा गया और श्री स्वामी के अमृतेश्वर लिंग के पास जाकर कहा कि हे गुरूदेव आपने ही बुला लिया तो ये कैसी लीला है आपका तभी एक आदमी पिछे की ओर से कुछ बोला।मैं पिछे देखा कोई साधक थे ,बोले क्या कोई दिक्कत है मैंने कहा दीक्षा लेना था,उसपर वे बोले कि आप श्री विष्णुकान्त मुरिया जी से मिलिए,वही उपदेशक है,श्रीगुरू जी के प्रिय शिष्य तथा बहुत बड़े साधक के साथ दयालु है,और गुरू चरण पादुका के समक्ष गुरूकृपा से यही दीक्षा देते है।यहाँ जो होता है श्री स्वामी की इच्छा से होता है,और गुरूदेव ने बुलाया है तो दीक्षा अवश्य मिलेगा ऐसा मेरा विश्वास था।मै प्रथम बार श्री मुरिया जी के पास गया,एक दिव्य व्यक्तित्व रक्त परिधान मे एक गौरवर्ण को देख मैने कहा कि मुझे दीक्षा चाहिए तो मेरा नाम पूछा,और गम्भीर मुद्रा मे कहा मिल जायेगा आज ही,स्वयं उन्होने सारी प्रक्रिया पूर्ण करवा कर बोले कि तीन बजे दीक्षा के लिए आ जाए।मैं समय के पूर्व ही पधार गया ,नियत समय पर दीक्षा हुआ,वह क्षण लगा जैसे स्वामी चरण पादुका पर विराजमान मंद मंद मुस्कुरा रहे है,मै थोड़े पल के लिए चेतना शून्य हो गया।जप शूरू करने से पुरे नवरात्र कितने दिव्य अनुभव हुए जैसे जन्म जन्म की मुराद पूरी हुई हो।श्री विष्णुकान्त मुरिया जी परम साधक के साथ एक विशिष्ट ज्योतिष भी है,तथा इतने दयालु है की आज भी उनके मार्गदर्शन से आगे बढ रहा हूँ।हमेशा इन्होने मुझपर अपनी दया दृष्टि रख साधना के गोपनीय मर्म समझा कर मुझे आगे बढाते रहे है।मेरे इस लेख को पढने वाले को मै जरूर कहूँगा कि एक बार श्री पीताम्बरा पीठ जाकर श्री पीताम्बरा माई के साथ श्री स्वामी का दर्शन करे,तथा वहाँ श्री धूमावती माई,महाकाल भौरव,श्री बटुक भौरव,श्री गणेश जी,श्री हनुमान जी,हरिद्रा सरोवर के साथ श्री स्वामी मंदिरम् का दर्शन करे,वही अमृतेश्वर महादेव मे साक्षात श्री स्वामी जी महराज विराज रहे है।यहाँ पर प्राचीन वण्खण्डेश्वर शिव मंदिर भी साक्षात जाग्रत शिव है जो भीम के द्वारा प्रतीष्ठित है,यह अश्वथामा की साधना स्थली रही है साथ मे श्री परशुराम जी का दर्शन भी करे।श्री माँ त्रिपुर सुन्दरी का मंदिर भी है परन्तु वहाँ दर्शन करना संभव नही है।भारत का ऐसा दिव्य शक्ति पीठ जो आज कही ऐसा दिखाई नही देता,जाए तो श्री विष्णुकान्त मुरिया जी जैसे अलौकिक,साधक से मिल आपको आत्मिक शांति मिलेगा।मैने इनका विशाल हृद्वय देखा है,तथा ये कितने विलक्षण पूरूष है शायद मै समझ नही पाता हूँ,कोइ भी समस्या हो शीघ्र समाधान बता देते है।जब गुरू कृपा होती है,तो जीवन के परम सत्य दिखाई देने लगता है।यह गुरू कृपा ही है कि मै स्वामी चरण रज की धूली लगा पाया।नाना पंथ जगत के निज निज गुण गावै।सबका सार बता कर गुरू मारग लावै।मन ही बंधन है,आत्मा की बात करने से कुछ नही होगा,गुरू ही सब कर्ता है,जो जैसा पात्र होगा उस समय गुरू की कृपा मिल ही जाती है।यह स्थान झाँसी के पास है।जीवन मे जब कोई निशचल मन से साधना पर चल पड़े तो स्वामी कृपा करते ही है।
3 comments:
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति | धन्यवाद|
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (21.05.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
नाना पंथ जगत के निज निज गुण गावै।
सबका सार बता कर गुरू मारग लावै।
बहुत सुंदर ......अर्थपूर्ण
Post a Comment