अध्यात्मिक विचार सत्य की ओर जाने का एक रास्ता है।भाव प्रेम की परकाष्टा के शिखर पर पहुँचने का सुलभ यात्रा है।सुन्दर विचार मन के पार आत्मा की गहराईयों से प्रकट होता है।योगी,ध्यानी या मंत्रज्ञ जब अध्यात्म की ओर बढता है तो बीच मे भोग की माया रचित प्रलोभनों मे उलझनें की ज्यादा संभावना बढ जाती है।मार्गदर्शक या गुरू सिद्ध हो तो उचित रास्ता निकाल देता है और रास्ता सुगम हो जाता है।
आज विश्व की जो स्थिति है यह बहुत बड़े अंहकारी लोगो के कारण है।धर्म क्या है हमे पशुता से मुक्त कर मानव से महामानव बना दे पर धर्म को सही समझ जाने पर।धर्म प्रेम पथ की डगर है।हिन्दू धर्म की व्यापकता से परे जो पथ भष्ट्र हुए वे अर्थ का अनर्थ कर दिए।कृष्ण ने कहा कि देखो अधर्म मत करो पांडव तुम्हारे भाई है इन्हे इनका पूरा हिस्सा नही भी,तो थोड़ा दे दो ये गुजारा कर लेंगे परन्तु कौरव नही माने,अंत मे शांति दूत बन अपना दिव्य रूप दिखाया तो भी कोई फर्क नही पड़ा,कृष्ण परमात्मा है अंहकारो से भरे ये दुर्जन पर दया कर सुधरने,समझने का कई मौका देने के बाद अततःमहाविनाश करना पड़ा।शाक्त पंथ क्या कहता है,शक्ति की उपासना से अर्थ,भोग,काम,मोक्ष प्राप्त होता है पर शाक्त कौन? नाम और जाप करने से ही नही शंकर जैसा स्वभाव शिव जैसा भोलापन अन्दर ,बाहर दिखाई देने लगे तब हम शाक्त बन पाते है।खानपान से वैष्णव नही मन से वैष्णव होना जरूरी है तभी हम विष्णु को देख पायेगे।परमात्मा अन्दर है वही बाहर है परन्तु दिखाई देता नही कारण हमारी आँखो में उसे देखने की ललक होनी चाहिए।हिन्दू धर्म मे सभी एक दुसरे को छोटा समझ विवाद करते है यह कैसा धर्म है।इसाई हिन्दू को मूर्ख समझे वही इस्लाम हिन्दू को तो हिन्दू सभी को मूर्ख समझते ये कैसा धर्म है।यह धर्म नही बस दिखावा मात्र है कि हम धार्मिक है।आज के बाबा खूब प्रवचन देते है मतलब भीड़ जुटाकर पैर पुजवाना और अपना अनुवायी बनाना ये कब करते है ध्यान या जाप इनमें आत्म बल बहुत होता होगा।रामकृष्ण परमहंस तो रात दिन माँ काली के ध्यान पूजन मै रहते परन्तु सिद्ध होने के बाद ही जनकल्याण कर पाए,फिर भी अंतिम समय पुजारी पंडित साजीश कर दक्षिणेश्वर से निकाल दिए वही मूर्ख पंडित धर्म के ठिकेदार है,इसीलिये धर्म विकृत हो गया है।सिर्फ सोचने या सम्प्रदाय मे जुड़ जाने से कोई धर्म को प्राप्त नही कर सकता।बात उन दिनों की है जब माँ काली की साधना में आन्नद आ रहा था,तभी मुझे कभी कभी श्री बगलामुखी का स्मरण हो जाता कारण काली मंदिर मे लोगो के कल्याण हेतु औघड़ गुरू जी माँ बगला का अनुष्ठान कराते,उतने दिन तक माँ को फल मिष्टान,पुआ का भोग लगता तथा काली माँ को पीत वस्त्र पहनाया जाता तो मै देख सोचता हे माँ क्या तु ही सारे रूप धारण करती हो क्या मै तेरे बगला रूप की साधना कर पाउँगा।तंत्र मार्ग सहज नही है इस मार्ग मे गुरू और इष्ट के बिना सब व्यर्थ है। माँ के तरफ से संकेत मिला था लेकिन शीघ्रता से लिया गया मेरा फैसला अनिष्ट होते होते बचा।एक दिन घर के पूजा स्थान मे मैने बगला का पाठ एंव मंत्र का जप कर लिया ,मन बेचैन हो गया तभी शाम के वक्त एक विषधर नाग आंगन मे घुस गया और पूजा रूम के जंगला होते घर मे घुसने लगा तभी मेरी पत्नि पूजा रूम से नाग को रोकने लगी,नाग भी गुस्सा में छत्र खड़ाकर, लगता था कि काट खायेगा परन्तु मेरी पत्नि भी हाथ खड़ा कर दी उस समय मेरे दोनो पुत्र भी घर पर थे पर मै शहर मे था तभी मेरे पुत्र ने मुझे फोन किया मै शीघ्र घर आया तो वह भंयकर दृश्य देख सरसों अभिमंत्रित कर नाग पर फेंका और पत्नि को हटाया। नाग को किसी तरह बाहर किया गया,इस घटना के बाद मै उदास हो गया था कि माँ बगला की साधना शायद मै नही कर पाउँगा।एक माह बिता होगा कि ग्वालियर के एक भक्त ने मुझे अपने यहाँ बुलाएं मुझे खुशी हुई कि प्रथम बार श्रीस्वामी के पास माँ बगला का दर्शन होगा,माँ बगला का ही एक नाम पीताम्बरा है। जब प्रथम बार दतिया पहुँचा तो शरीर काँप रहा था भाव विहवल आँसु गिरता रहा तभी लगा कि माँ काली तथा गुरू जी साथ है,पीताम्बरा माई को देख माँ काली के श्याम वर्ण की छवि गौर वर्ण मे देख अपने आप को सम्पूर्णता से अर्पण किया।बहुत ऐसी घटनायें है लेकिन सभी बातो को बताना उचित नही है।पीताम्बरा की साधना बड़े बड़े पंडित, साधक मंच पर भाषण देने वाले लोग के बस की बात नही है ,जिसपर शिव,काली कृपा करे और सिद्ध गुरू मिले उसके लिए ये अंतिम साधना हो सकता है।माँ पीताम्बरा अपने भक्त को तकलीफ में देख नही पाती है कारण यह काली की ही एक रूप है।बगलामुखी की उत्पति की कथा है कि पहले कृत युग में सारे संसार का नाश करने वाला भंयकर तूफान उपस्थित हुआ इससे सारे जीव त्राहीमाम करने लगे तब उसे देखकर भगवान विष्णु चिंतित होकर इस विनाश लीला से निपटने के लिए सौराष्ट्र देश में हरिद्रा सरोवर के समीप तपस्या करने लगे तब श्रीमहात्रिपुर सुंदरी प्रकट हुई,ये ही बगला रूप में प्रकट होकर उस भंयकर तूफान को क्षण मात्र में रोक दिया और वह भंयकर तुफान शांत हो गया।त्रैलोक्य स्तंभिनी ब्रह्मास्त्र रूपा श्रीविद्या की वैष्णव तेज से युक्त मंगलवार "वीर रात्री"चतुर्दशी को माँ बगलामुखी का आविर्भाव हुआ।इनकी अराधना करने वाला साधक सिद्ध हो जाता है।ये स्तंभन की शक्ति के साथ त्रिशक्ति कहलाती है,पृथ्वी,स्वर्ग,सारे लोक इनके प्रभाव से ठहरा है।दारिद्रय,वाद विवाद ,शत्रु,रोग,अचानक आपदा,भय,भुत पिशाच,तंत्र,ग्रह बाधा जीवन मे अनुकूलता सभी का शमन कर ये भोग के साथ मोक्ष प्रदान करती है।ये क्या नहीं कर सकती,ये परम करूणामयी माता है।बहुत सुसंस्कारित व्यक्ति ही इनकी साधना कर पाते है।एक बार की बात है एक बहुत ही सज्जन बैंक अधिकारी के मकान को कुछ बड़े अपराधी कब्जा कर लिए,पुलिस,नेता से पैरवी कराने के बाद भी वे मकान छोड़ने की बात तो दूर उन्हें भी धमकाते,अब वे सज्जन आत्महत्या पर उतारू हो गये तभी मेरे सम्पर्क मे आये,उनका मानसिक अवस्था देख मै उन्हे लेकर कब्जा वाले मकान पर जा पहुँचा।मेरे जाते ही १५,२० अपराधी घेर लिए वे बहुत कोध्र मे अशब्दों का प्रयोग करने लगे तभी मैंने माँ का स्मरण किया १० मीनट मे ही स्थिति उल्टी हो गई, वे सज्जन बन मेरा परिचय जानने लगे पर मैने बताया नही,सिर्फ इतना ही कहा कि जीवन मे कुछ गल्ती का दंड जब मिलने लगता है तो कोइ भी साथ नहीं देता आप सभी घर खाली कर दे।माँ ने लगा सभी को पंगु और सज्जन बना दिया था,उसमे ऐसे अपराधी थे कि दान धर्म से दूर वे सिर्फ गलत कार्य ही करते थे,वे विन्रम होकर बोले कि १५ दिन का समय दे मकान खाली कर देंगे।मेरे शहर से १०० कोस दूर वे मुझे जानते भी नही थे।वे माँ के लीला को क्या जाने मेरा आवाभगत करने लगे तभी उसके एक मित्र जो वहाँ के बड़े अधिवक्ता थे आ गये,वे मुझे पहचानते थे,अब जब वे मुझे देख भावविभोर हो गये तो कहना ही क्या उन बैंक अधिकारी से माफी मांगने लगे और ५दिन में मकान खाली किए तथा किराया जो एक वर्ष का बाकी था वह भी दे दिए,ऐसा प्रभाव है माँ पीताम्बरा माई का।बगला परम शक्ति सिद्ध
विद्या है इन्हें जनमानस के कष्ट देख साक्षात शिव को ही श्रीस्वामी के रूप मे दतिया में पीताम्बरा पीठ की स्थापना करनी पड़ी,उनके द्वारा रचित श्रीबगलामुखी रहस्य दुर्लभ हैं।इनके मंत्र जप से कुण्डिलिनी शक्ति जाग्रत होने लगता है।विश्व की सारी संयुक्त शक्ति मिलकर भी इन बगला शक्ति का मुकाबला नही कर सकते परन्तु दुर्भाग्य है हम लोगो का बगला के रहते भी हम असहाय है,कारण इनकी उपासना मे हमे सरल चित होना पड़ेगा।इनकी उपासना मे मंत्र जप क्रम पद्धति से करना पड़ता है,एक अक्षर से आगे ३६ अक्षर इनका मुख्य मंत्र है।कवच,स्तोत्र,न्यास अंग पूजा मे गुरूमंत्र,गणेश,मृत्युञ्जय मंत्र,गायत्री,बटुक भैरव,योगिनी,विडालिका यक्षिणी का पूजन जप होता है।इनके षोढान्यास साधक माता ,गुरू के अलावा किसी को प्रणाम नही कर सकते, कारण कोइ भी इनके प्रणाम करने से महापतन को प्राप्त हो सकता है।पीताम्बरा का साधक अगर सिद्ध हो गया तो शिव के समान हो जाता है।इनकी साधना करने से कोइ भी कामना शीघ्र पूर्ण हो जाता है।कई जन्मों के पुण्य प्रभाव जब एक साथ मिल जाए तो गुरू मिलते है और इनकी साधना हो पाती है। इन्हे सिद्ध विद्या कहा गया इस लिए कि ये अपने साधक को सारी गंदगी साफ कर शुद्ध बुद्ध बनाकर सिद्ध कर देती है।आज धर्म,उपासना में विशेष लोगो का रूझान बढा है वही छदम भेष बनाकर स्वयं,सिद्ध,गुरू बन रहे है तो एक बार दतिया पीताम्बरा माई के दर्शन कर आए लेकिन सरलचित होकर जाए वहाँ स्वामी,पीताम्बरा दोनो की कृपा मिलेगी।दशों महाविद्यायें करूणामयी है,उनके उग्र स्वभाव पर न जाए भक्त के लिए महामाई है लेकिन गलत लोगो पर भले ये दिखावटी क्रोध करती हो तथा दुष्टों के लिए तो कालरात्री है।अपने भक्त पर इनकी ऐसी दया है कि रक्षा के साथ कुल की भी रक्षा करती है साथ सभी कुछ खुद सम्हाल लेती है ये पीत वस्त्र धारण करती है।ये माँ त्रिपुरसुन्दरी है।सांख्यायन तंत्र में बहुत सारा प्रयोग है तथा मंत्र महावर्ण,तन्त्रसार में इनकी उपासना का विधान है परन्तु इस पृथ्वी पर एकमात्र श्री पीताम्बरा पीठ ही है जहाँ से शुद्ध रूप से विधि प्राप्त हो सकता है।इनके यंत्र पूजा का विधिवत आवरण पूजन सांगोपांग करना पड़ता है।माँ बगला के शिव मृत्युञ्जय है जो शस्त्र विहिन है अपने आठो हाथ के साथ माँ अमृतेश्वरी के साथ विराजमान है।शिव चार हाथ से दिव्य कलश से अपने उपर अमृत का अभिषेक कर रहे है,उनका यह इशारा है कि ये बगला शक्ति के साथ अमृत रूप मे चारों हाथ अर्थ,धर्म,काम,मोक्ष देने वाला है तथा नीचे का चार हाथ में दो में से एक हाथ की मुद्रा ज्ञान का प्रतीक है कि जीव तुमको ज्ञान हो गया कि तुम "मै ,ही, हूँ कोइ भेद नहीं तुम परमात्मा हो ये कैसे हुआ कारण मेरे एक हाथ में जप मालिका यानि पवित्र होकर जप करो,जपात् सिद्धि,जपात् सिद्धि,जप करने से तुम सिद्ध हो पाए तभी जाकर नीचे के दो हाथ से जीव को अमृत बांटो उसे भव रोग से मुक्त करो।जप में "ज"अक्षर जीव मे "ज"अक्षर जगत मे "ज"अक्षर जगदम्बा में "ज"अक्षर यानि जप से जगदम्बा प्रसन्न होकर जगत में जीव को स्वरूप प्रदान करती है और जीव अष्टपाश से मुक्त होकर शिव बन जाता है।कुण्डिलिनी शक्ति नाभी के बहुत नीचे है तथा शिव सबसे उपर आज्ञा चक्र मे तथा सहस्त्रसार में है,बीच में कुण्डिलिनी के उपर श्रीगणेश,बह्मा,विष्णु,आत्मा,भूलोक कइ देवि,देवता कण्ठ में शक्ति आज्ञा चक्र में गुरू,शिव खड़े है और अंत मे परमात्मा शिव निराकार,साकार, विराजमान है ,वहाँ शक्ति ही ले जाती है तब शिव शक्ति एक हो जाते है उन्हें पीताम्बरा कहे या श्री स्वामी शिव। कुछ शेष नही रहता तभी तो श्री स्वामी ने सिद्धान्त रहस्य में कहा है कि "जो पराशक्ति समस्त जगत को चैतन्य प्रदान करके स्वरूप प्रदर्शित करने के योग्य बनाती है सत् चितआनन्द जिसका स्वरूप है ब्रह्मा,विष्णु,महेश भी जिसकी आशा करते है।जो दयामयी है अपनी सभी सन्तानों पर जिसकी अपार असीम कृपा हो रही है।जिसकी सहायता बिना ब्रह्म भी शव के तुल्य है।उसकी भक्ति मातृॠण से मुक्त होने के लिये सभी संसार को करनी चाहिए,ऐसी जगतमाता की भक्ति जोनहीं करता वास्तव में उसका बड़ा भारी दिर्भाग्य है,क्योंकि ऐश्वर्य,भक्ति,मुक्ति,ज्ञान,निश्रेयस आदि फलों की दाता वही है।
आज विश्व की जो स्थिति है यह बहुत बड़े अंहकारी लोगो के कारण है।धर्म क्या है हमे पशुता से मुक्त कर मानव से महामानव बना दे पर धर्म को सही समझ जाने पर।धर्म प्रेम पथ की डगर है।हिन्दू धर्म की व्यापकता से परे जो पथ भष्ट्र हुए वे अर्थ का अनर्थ कर दिए।कृष्ण ने कहा कि देखो अधर्म मत करो पांडव तुम्हारे भाई है इन्हे इनका पूरा हिस्सा नही भी,तो थोड़ा दे दो ये गुजारा कर लेंगे परन्तु कौरव नही माने,अंत मे शांति दूत बन अपना दिव्य रूप दिखाया तो भी कोई फर्क नही पड़ा,कृष्ण परमात्मा है अंहकारो से भरे ये दुर्जन पर दया कर सुधरने,समझने का कई मौका देने के बाद अततःमहाविनाश करना पड़ा।शाक्त पंथ क्या कहता है,शक्ति की उपासना से अर्थ,भोग,काम,मोक्ष प्राप्त होता है पर शाक्त कौन? नाम और जाप करने से ही नही शंकर जैसा स्वभाव शिव जैसा भोलापन अन्दर ,बाहर दिखाई देने लगे तब हम शाक्त बन पाते है।खानपान से वैष्णव नही मन से वैष्णव होना जरूरी है तभी हम विष्णु को देख पायेगे।परमात्मा अन्दर है वही बाहर है परन्तु दिखाई देता नही कारण हमारी आँखो में उसे देखने की ललक होनी चाहिए।हिन्दू धर्म मे सभी एक दुसरे को छोटा समझ विवाद करते है यह कैसा धर्म है।इसाई हिन्दू को मूर्ख समझे वही इस्लाम हिन्दू को तो हिन्दू सभी को मूर्ख समझते ये कैसा धर्म है।यह धर्म नही बस दिखावा मात्र है कि हम धार्मिक है।आज के बाबा खूब प्रवचन देते है मतलब भीड़ जुटाकर पैर पुजवाना और अपना अनुवायी बनाना ये कब करते है ध्यान या जाप इनमें आत्म बल बहुत होता होगा।रामकृष्ण परमहंस तो रात दिन माँ काली के ध्यान पूजन मै रहते परन्तु सिद्ध होने के बाद ही जनकल्याण कर पाए,फिर भी अंतिम समय पुजारी पंडित साजीश कर दक्षिणेश्वर से निकाल दिए वही मूर्ख पंडित धर्म के ठिकेदार है,इसीलिये धर्म विकृत हो गया है।सिर्फ सोचने या सम्प्रदाय मे जुड़ जाने से कोई धर्म को प्राप्त नही कर सकता।बात उन दिनों की है जब माँ काली की साधना में आन्नद आ रहा था,तभी मुझे कभी कभी श्री बगलामुखी का स्मरण हो जाता कारण काली मंदिर मे लोगो के कल्याण हेतु औघड़ गुरू जी माँ बगला का अनुष्ठान कराते,उतने दिन तक माँ को फल मिष्टान,पुआ का भोग लगता तथा काली माँ को पीत वस्त्र पहनाया जाता तो मै देख सोचता हे माँ क्या तु ही सारे रूप धारण करती हो क्या मै तेरे बगला रूप की साधना कर पाउँगा।तंत्र मार्ग सहज नही है इस मार्ग मे गुरू और इष्ट के बिना सब व्यर्थ है। माँ के तरफ से संकेत मिला था लेकिन शीघ्रता से लिया गया मेरा फैसला अनिष्ट होते होते बचा।एक दिन घर के पूजा स्थान मे मैने बगला का पाठ एंव मंत्र का जप कर लिया ,मन बेचैन हो गया तभी शाम के वक्त एक विषधर नाग आंगन मे घुस गया और पूजा रूम के जंगला होते घर मे घुसने लगा तभी मेरी पत्नि पूजा रूम से नाग को रोकने लगी,नाग भी गुस्सा में छत्र खड़ाकर, लगता था कि काट खायेगा परन्तु मेरी पत्नि भी हाथ खड़ा कर दी उस समय मेरे दोनो पुत्र भी घर पर थे पर मै शहर मे था तभी मेरे पुत्र ने मुझे फोन किया मै शीघ्र घर आया तो वह भंयकर दृश्य देख सरसों अभिमंत्रित कर नाग पर फेंका और पत्नि को हटाया। नाग को किसी तरह बाहर किया गया,इस घटना के बाद मै उदास हो गया था कि माँ बगला की साधना शायद मै नही कर पाउँगा।एक माह बिता होगा कि ग्वालियर के एक भक्त ने मुझे अपने यहाँ बुलाएं मुझे खुशी हुई कि प्रथम बार श्रीस्वामी के पास माँ बगला का दर्शन होगा,माँ बगला का ही एक नाम पीताम्बरा है। जब प्रथम बार दतिया पहुँचा तो शरीर काँप रहा था भाव विहवल आँसु गिरता रहा तभी लगा कि माँ काली तथा गुरू जी साथ है,पीताम्बरा माई को देख माँ काली के श्याम वर्ण की छवि गौर वर्ण मे देख अपने आप को सम्पूर्णता से अर्पण किया।बहुत ऐसी घटनायें है लेकिन सभी बातो को बताना उचित नही है।पीताम्बरा की साधना बड़े बड़े पंडित, साधक मंच पर भाषण देने वाले लोग के बस की बात नही है ,जिसपर शिव,काली कृपा करे और सिद्ध गुरू मिले उसके लिए ये अंतिम साधना हो सकता है।माँ पीताम्बरा अपने भक्त को तकलीफ में देख नही पाती है कारण यह काली की ही एक रूप है।बगलामुखी की उत्पति की कथा है कि पहले कृत युग में सारे संसार का नाश करने वाला भंयकर तूफान उपस्थित हुआ इससे सारे जीव त्राहीमाम करने लगे तब उसे देखकर भगवान विष्णु चिंतित होकर इस विनाश लीला से निपटने के लिए सौराष्ट्र देश में हरिद्रा सरोवर के समीप तपस्या करने लगे तब श्रीमहात्रिपुर सुंदरी प्रकट हुई,ये ही बगला रूप में प्रकट होकर उस भंयकर तूफान को क्षण मात्र में रोक दिया और वह भंयकर तुफान शांत हो गया।त्रैलोक्य स्तंभिनी ब्रह्मास्त्र रूपा श्रीविद्या की वैष्णव तेज से युक्त मंगलवार "वीर रात्री"चतुर्दशी को माँ बगलामुखी का आविर्भाव हुआ।इनकी अराधना करने वाला साधक सिद्ध हो जाता है।ये स्तंभन की शक्ति के साथ त्रिशक्ति कहलाती है,पृथ्वी,स्वर्ग,सारे लोक इनके प्रभाव से ठहरा है।दारिद्रय,वाद विवाद ,शत्रु,रोग,अचानक आपदा,भय,भुत पिशाच,तंत्र,ग्रह बाधा जीवन मे अनुकूलता सभी का शमन कर ये भोग के साथ मोक्ष प्रदान करती है।ये क्या नहीं कर सकती,ये परम करूणामयी माता है।बहुत सुसंस्कारित व्यक्ति ही इनकी साधना कर पाते है।एक बार की बात है एक बहुत ही सज्जन बैंक अधिकारी के मकान को कुछ बड़े अपराधी कब्जा कर लिए,पुलिस,नेता से पैरवी कराने के बाद भी वे मकान छोड़ने की बात तो दूर उन्हें भी धमकाते,अब वे सज्जन आत्महत्या पर उतारू हो गये तभी मेरे सम्पर्क मे आये,उनका मानसिक अवस्था देख मै उन्हे लेकर कब्जा वाले मकान पर जा पहुँचा।मेरे जाते ही १५,२० अपराधी घेर लिए वे बहुत कोध्र मे अशब्दों का प्रयोग करने लगे तभी मैंने माँ का स्मरण किया १० मीनट मे ही स्थिति उल्टी हो गई, वे सज्जन बन मेरा परिचय जानने लगे पर मैने बताया नही,सिर्फ इतना ही कहा कि जीवन मे कुछ गल्ती का दंड जब मिलने लगता है तो कोइ भी साथ नहीं देता आप सभी घर खाली कर दे।माँ ने लगा सभी को पंगु और सज्जन बना दिया था,उसमे ऐसे अपराधी थे कि दान धर्म से दूर वे सिर्फ गलत कार्य ही करते थे,वे विन्रम होकर बोले कि १५ दिन का समय दे मकान खाली कर देंगे।मेरे शहर से १०० कोस दूर वे मुझे जानते भी नही थे।वे माँ के लीला को क्या जाने मेरा आवाभगत करने लगे तभी उसके एक मित्र जो वहाँ के बड़े अधिवक्ता थे आ गये,वे मुझे पहचानते थे,अब जब वे मुझे देख भावविभोर हो गये तो कहना ही क्या उन बैंक अधिकारी से माफी मांगने लगे और ५दिन में मकान खाली किए तथा किराया जो एक वर्ष का बाकी था वह भी दे दिए,ऐसा प्रभाव है माँ पीताम्बरा माई का।बगला परम शक्ति सिद्ध
विद्या है इन्हें जनमानस के कष्ट देख साक्षात शिव को ही श्रीस्वामी के रूप मे दतिया में पीताम्बरा पीठ की स्थापना करनी पड़ी,उनके द्वारा रचित श्रीबगलामुखी रहस्य दुर्लभ हैं।इनके मंत्र जप से कुण्डिलिनी शक्ति जाग्रत होने लगता है।विश्व की सारी संयुक्त शक्ति मिलकर भी इन बगला शक्ति का मुकाबला नही कर सकते परन्तु दुर्भाग्य है हम लोगो का बगला के रहते भी हम असहाय है,कारण इनकी उपासना मे हमे सरल चित होना पड़ेगा।इनकी उपासना मे मंत्र जप क्रम पद्धति से करना पड़ता है,एक अक्षर से आगे ३६ अक्षर इनका मुख्य मंत्र है।कवच,स्तोत्र,न्यास अंग पूजा मे गुरूमंत्र,गणेश,मृत्युञ्जय मंत्र,गायत्री,बटुक भैरव,योगिनी,विडालिका यक्षिणी का पूजन जप होता है।इनके षोढान्यास साधक माता ,गुरू के अलावा किसी को प्रणाम नही कर सकते, कारण कोइ भी इनके प्रणाम करने से महापतन को प्राप्त हो सकता है।पीताम्बरा का साधक अगर सिद्ध हो गया तो शिव के समान हो जाता है।इनकी साधना करने से कोइ भी कामना शीघ्र पूर्ण हो जाता है।कई जन्मों के पुण्य प्रभाव जब एक साथ मिल जाए तो गुरू मिलते है और इनकी साधना हो पाती है। इन्हे सिद्ध विद्या कहा गया इस लिए कि ये अपने साधक को सारी गंदगी साफ कर शुद्ध बुद्ध बनाकर सिद्ध कर देती है।आज धर्म,उपासना में विशेष लोगो का रूझान बढा है वही छदम भेष बनाकर स्वयं,सिद्ध,गुरू बन रहे है तो एक बार दतिया पीताम्बरा माई के दर्शन कर आए लेकिन सरलचित होकर जाए वहाँ स्वामी,पीताम्बरा दोनो की कृपा मिलेगी।दशों महाविद्यायें करूणामयी है,उनके उग्र स्वभाव पर न जाए भक्त के लिए महामाई है लेकिन गलत लोगो पर भले ये दिखावटी क्रोध करती हो तथा दुष्टों के लिए तो कालरात्री है।अपने भक्त पर इनकी ऐसी दया है कि रक्षा के साथ कुल की भी रक्षा करती है साथ सभी कुछ खुद सम्हाल लेती है ये पीत वस्त्र धारण करती है।ये माँ त्रिपुरसुन्दरी है।सांख्यायन तंत्र में बहुत सारा प्रयोग है तथा मंत्र महावर्ण,तन्त्रसार में इनकी उपासना का विधान है परन्तु इस पृथ्वी पर एकमात्र श्री पीताम्बरा पीठ ही है जहाँ से शुद्ध रूप से विधि प्राप्त हो सकता है।इनके यंत्र पूजा का विधिवत आवरण पूजन सांगोपांग करना पड़ता है।माँ बगला के शिव मृत्युञ्जय है जो शस्त्र विहिन है अपने आठो हाथ के साथ माँ अमृतेश्वरी के साथ विराजमान है।शिव चार हाथ से दिव्य कलश से अपने उपर अमृत का अभिषेक कर रहे है,उनका यह इशारा है कि ये बगला शक्ति के साथ अमृत रूप मे चारों हाथ अर्थ,धर्म,काम,मोक्ष देने वाला है तथा नीचे का चार हाथ में दो में से एक हाथ की मुद्रा ज्ञान का प्रतीक है कि जीव तुमको ज्ञान हो गया कि तुम "मै ,ही, हूँ कोइ भेद नहीं तुम परमात्मा हो ये कैसे हुआ कारण मेरे एक हाथ में जप मालिका यानि पवित्र होकर जप करो,जपात् सिद्धि,जपात् सिद्धि,जप करने से तुम सिद्ध हो पाए तभी जाकर नीचे के दो हाथ से जीव को अमृत बांटो उसे भव रोग से मुक्त करो।जप में "ज"अक्षर जीव मे "ज"अक्षर जगत मे "ज"अक्षर जगदम्बा में "ज"अक्षर यानि जप से जगदम्बा प्रसन्न होकर जगत में जीव को स्वरूप प्रदान करती है और जीव अष्टपाश से मुक्त होकर शिव बन जाता है।कुण्डिलिनी शक्ति नाभी के बहुत नीचे है तथा शिव सबसे उपर आज्ञा चक्र मे तथा सहस्त्रसार में है,बीच में कुण्डिलिनी के उपर श्रीगणेश,बह्मा,विष्णु,आत्मा,भूलोक कइ देवि,देवता कण्ठ में शक्ति आज्ञा चक्र में गुरू,शिव खड़े है और अंत मे परमात्मा शिव निराकार,साकार, विराजमान है ,वहाँ शक्ति ही ले जाती है तब शिव शक्ति एक हो जाते है उन्हें पीताम्बरा कहे या श्री स्वामी शिव। कुछ शेष नही रहता तभी तो श्री स्वामी ने सिद्धान्त रहस्य में कहा है कि "जो पराशक्ति समस्त जगत को चैतन्य प्रदान करके स्वरूप प्रदर्शित करने के योग्य बनाती है सत् चितआनन्द जिसका स्वरूप है ब्रह्मा,विष्णु,महेश भी जिसकी आशा करते है।जो दयामयी है अपनी सभी सन्तानों पर जिसकी अपार असीम कृपा हो रही है।जिसकी सहायता बिना ब्रह्म भी शव के तुल्य है।उसकी भक्ति मातृॠण से मुक्त होने के लिये सभी संसार को करनी चाहिए,ऐसी जगतमाता की भक्ति जोनहीं करता वास्तव में उसका बड़ा भारी दिर्भाग्य है,क्योंकि ऐश्वर्य,भक्ति,मुक्ति,ज्ञान,निश्रेयस आदि फलों की दाता वही है।
11 comments:
maa ki shakti aprampar hai .aapka aalekh man ko jagrit karta hai .aabhar .
aapka aadhyatmik v gyanvardhak blog aaj ye blog achchha laga par liya gaya hai.kripya upasthit ho anugrahit karen.[http://yeblogachchhalaga.blogspot.com]
धर्म प्रेम पथ की डगर है। bahut achchha sandesh deti aapki post.ye blog achchha laga se aapke blog par aana hua aur aana sarthak ho gaya.aabhar.
माँ की शक्ति अपरम्पार है| धन्यवाद|
आप ने दतिया में मां पीताम्बरा के साथ मां धूमावती जी के भी दर्शन किये होंगें , क्या आप मां धूमावती जी के बारे में विस्तार से जानकारी दे सकते हे ?
भक्ति से भरा हुआ ब्लाग
बहुत अच्छा लिखा है आपने
जो साधक अपने जीवन में निश्चिंत और निर्भीक रहना चाहते हैं उन्हें पीताम्बरा की साधना करनी चाहिए।
जो साधक अपने जीवन में निश्चिंत और निर्भीक रहना चाहते हैं उन्हें पीताम्बरा की साधना करनी चाहिए।
महामाई अब बस कृपा करो,, दया करो ,,,,सुन लो माँ
Jay jay pitambere
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